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29 Jan 2018 · 1 min read

धूल लगी किताब

धूल लगी उस किताब को,
क्या फिर से खोल पाओगे…
जो गुजर गई है बातें सारी,
क्या उन्हें फिर से दोहराओगे…

माना काबिल बहुत हो तुम,
और गम से तुम बेगानी हो…
खूबसूरती की जो शमा जले तो,
तुम परियों की रानी हो…

तुम्हारी मद मस्त आंखों से क्या,
तुम अब हमें समझाओगे…
या कहीं देख कर के हमें,
तुम पलकें अपनी झुकाओगे…

बेगाना करके हमें तुम,
किसी और के साथ जो जाओगे…
पर गैरों का साथ पाकर तुम,
क्या खुद को संभाल पाओगे…

हां गलतियां की है मैंने,
और कुछ नादानियां भी…
अंगुलियों पर यह गलतियां,
अपने दोस्तों को गिनाओगे…

हम नहीं थे काबिल तुम्हारे,
हम मानते हैं मगर…
क्या कभी दिल से हमें,
बाहर निकाल पाओगे…

लौटकर आ चल,
फिर से एक हो जाते हैं…
मेरी राह के कांटों को,
दोनों मिल कर साथ हटाते हैं…

जो दोगे साथ आज तुम मेरा,
कल मेरा साथ तुम पाओगे…
छोड़ कर के इस दीवाने दिल को,
तुम भी नयन बरसाओगे…

तोड़ कर के यह दिल मेरा,
तुम ऐसा दिल ना कभी पाओगे…
दूर हो कर के तुम हमसे,
कल तुम बहुत पछताओगे…

धूल लगी उस किताब को,
क्या फिर से खोल पाओगे…
जो गुजर गई है बातें सारी,
क्या उन्हें फिर से दोहराओगे…

मृत्युंजय सिसोदिया
9549403468

Language: Hindi
430 Views
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