Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2020 · 4 min read

धूम्र रेखा

आकाश में उठता धुआं मेरे लिए हमेशा कौतुहल का विषय रहा , वो चाहे किसी ज्वालामुखी के फटने पर उठता हुआ गहन आकाश में विलीन होता धुंआ और लावा मिश्रित राख का प्रचंड गुबार हो या फिर कुमामाऊं की पहाड़ियों पर सैकड़ों मील तक फैली ऊंचे चीड़ के जंगलों में झरे पिरूल में लगी आग से उठता धुंआ हो ।किसी शाम सड़क या रेल मार्ग से यात्रा में साथ साथ चलता हवा में धान के खेतों के ऊपर और नीले आसमान , बादलों के बीच एक लंम्बी सी रेखा बनाता कहीं दूर स्थित किसी फैक्टरी , मिल या फिर किसी नदी किनारे चिता से उठता धुआं सफर का साथी बन अपने सोत्र की हलचल छुपाये कुछ समय के लिये हमसफ़र बन कर पीछे छूट जाता ।
किसी शाम अपार विस्तार में फैले गांवों के खेत – खलिहानों के बीच बनी झोपड़ियों के चूल्हों से निकल कर धुंध में विलीन होती धुंए की लकीरें मुझे उन घरौंदों में होने वाली हलचल का पता दे जातीं ।ऐसी ही धूम्र रेखाओं को याद करते हुए मैं अपने अतीत में झलकी उन सबमें विशिष्ठ उन घुएं की लकीरों की याद ताज़ा कर लेता हूं जो मेरे मेडिकल कालेज के प्रवास के दिनों में वहां के बहुमंजिली अस्पताल के वार्ड्स के बीच स्थित विशाल प्रांगण में दूर दराज़ के जिलों , पड़ोसी प्रदेशों , निकट के नेपाली पर्वतीय क्षेत्रों से आये ग्रामीणों द्वारा सुलगाये कंडों से निकलती थीं । जिन्हें एक गोलाकार विन्यास में रख कर सुलगा कर पहले उनकी तेज़ आंच के बीच में एक हंडिया रख कर वे दाल पकाते थे और इस बीच आटा गूंथ कर उसकी बाटी बनाने के लिये लोइयां बना कर ,आलू , बैगन के साथ उस मद्धिम होती आंच के अंगारों की राख में दबा देते थे । फिर आंच ठंडी होने पर उस राख में से एक साथ तैयार ढेर सारी ताज़ी गर्म सिकीं बाटियाँ निकलतीं थीं जिनसे तंदूर में सिंक रही रोटियों से निकलने वाली जैसी खुशबू आती थी।भुने आलूओं और बैगन से चोखा तैयार होता । इतने कम संसाधनों में इतना सात्विक , किफ़ायती , स्वादिष्ट , पौष्टिक , सुपाच्य , इतनी सरल एवम त्वरित गति से व्यंजन बनाने की उनकी कला जो एक बार में एक साथ कई लोगों की क्षुधा शांत कर सके , जिसमें एक बार में एक साथ पूरे व्यंजन पक कर तैयार होते हों , जिससे पकाने वाला भी सबके साथ ही बैठ कर भोजन ग्रहण कर सके प्रशंसनीय थी ।
शाम के समय जब कभी मैं इवनिंग क्लीनिक क्लासेस जो आगे चल कर मेरे इवनिंग राउंड में बदल गईं के समय ऊपर की बहुमंजिला इमारत से कभी मेरी दृष्टि नीचे पड़ती तो वहां दिखाई देती प्रांगण से उठती ये धुंए की लकीरें बरबस मेरा ध्यान आकृष्ट कर लेती थीं । फिर शाम की क्लीनिकल क्लासेज अथवा राउंड पूरा करने के पश्चात मैं जब बहुमंजिली सीढ़ियां एक-एक कर उतर कर नीचे आता तो वहां के विस्तृत प्रांगण में खुली हवा में झुंड के रूप में गोला बनाकर और कहीं लाइन में प्रेमपूर्वक बैठे ग्रामीण जन दाल – बाटी – चोखा का स्वाद ले कर आनंद से खा रहे होते थे तो लगता था जैसे अनेक हवनों के क्रियान्वयन हेतु वे अपनी जठराग्नि के कुंड में उन व्यंजनों की समिधा डाल कर आहुति पूर्ण कर रहे हों । मुझे उन्हें इस तरह खाते हुए देख कर एक परम् सन्तुष्टि एवम आनंद की अनुभूति होती थी और मैं अक्सर उन लोगों के इन व्यंजनों और क्षुधा शांत करते खाने के सलीके को ललचाई दृष्टि से देखते हुए उन लोगों के बीच से गुज़र जाया करता था । ऐसे में कभी कभी मेरी नज़र किसी खाते हुए व्यक्ति से टकरा जाती और मेरी उसको इस तरह से देखने की मेरी चोरी पकड़ ली जाती थी । मुझे लगता था कि कभी-कभी जिस समय कोई ग्रामीण अपनी थाली में दाल बाटी सान कर खा रहा होता था तो उसके मुंह में दाल बाटी भरी होती थी तथा हाथ थाली में अगले ग्रास के लिये दाल बाटी को मिला रहे होते थे तथा वह अपनी तिरछी नजरों के कोर से मेरी लालची दृष्टि को पहचान जाते थे । यह वह समय होता था जब शाम को मेरी मेस में भी अभी खाना तैयार नहीं हुआ होता था , और मैं यह जानता था कि जब मैं छात्रावास पहुंचूंगा तो एक इंतजार के बाद वहां हमेशा की तरह आलू भिंडी की सब्जी और छोलों जैसी किसी चीज़ के साथ गत्ते जैसे पराठे खाने चबाने को मिलेंगे ।
उन ग्रामीणों को खाते देख अक्सर मेरा मन उनके हवन तुल्य भोज में शामिल हो कर खाने को करता था पर बिन बुलाये अथिति के समान मन में उपजी संकोची प्रव्रत्ति से बंधा मैं कभी इस कृत्य के लिये साहस नहीं जुटा पाया कि उन लोगों से कह सकता
‘ मुझे भी अपने साथ बैठा एक बाटी मुझे खिला कर अपने इस हवन यज्ञ जैसी क्रिया में मेरी आहुति स्वीकार कर लो ।’
अब मुझे वह स्वाद किसी व्यवसायिक सितारा छाप रेसॉर्ट में वाद्य संगीत के स्वरों पर झूमर नृत्य प्रस्तुत करती नृत्यांगना के प्रदर्शन के साथ बियर , वाइन या किसी उम्दा मदिरा तथा अन्य व्यजंनों के साथ परोसी गयी देसी घी में डूबी भरवाँ बाटियों में अनेकों बार कहीं ढूंढ़ने पर भी न मिल सका ।
इन्हीं विचारों में खोया अपनी धूम्र रेखा के समान विलुप्त होती स्मृतियों के बीच कौंधता कबीर का यह गीत मेरे मन मे गूंज उठता है
‘ मन लागो मेरो यार फकीरी में …….’.

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 6 Comments · 400 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
देश के संविधान का भी
देश के संविधान का भी
Dr fauzia Naseem shad
शब्द लौटकर आते हैं,,,,
शब्द लौटकर आते हैं,,,,
Shweta Soni
इंसान को इंसान से दुर करनेवाला केवल दो चीज ही है पहला नाम मे
इंसान को इंसान से दुर करनेवाला केवल दो चीज ही है पहला नाम मे
Dr. Man Mohan Krishna
डा. अम्बेडकर बुद्ध से बड़े थे / पुस्तक परिचय
डा. अम्बेडकर बुद्ध से बड़े थे / पुस्तक परिचय
Dr MusafiR BaithA
Kitna hasin ittefak tha ,
Kitna hasin ittefak tha ,
Sakshi Tripathi
ज़िंदगी के मर्म
ज़िंदगी के मर्म
Shyam Sundar Subramanian
परिवर्तन विकास बेशुमार
परिवर्तन विकास बेशुमार
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"नेशनल कैरेक्टर"
Dr. Kishan tandon kranti
*वह भी क्या दिन थे : बारात में नखरे करने के 【हास्य-व्यंग्य 】
*वह भी क्या दिन थे : बारात में नखरे करने के 【हास्य-व्यंग्य 】
Ravi Prakash
होली कान्हा संग
होली कान्हा संग
Kanchan Khanna
#शेर
#शेर
*Author प्रणय प्रभात*
यह जो पापा की परियां होती हैं, ना..'
यह जो पापा की परियां होती हैं, ना..'
SPK Sachin Lodhi
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ये गजल बेदर्द,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ये गजल बेदर्द,
Sahil Ahmad
माॅं
माॅं
Pt. Brajesh Kumar Nayak
अबोध प्रेम
अबोध प्रेम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
इक्कीस मनकों की माला हमने प्रभु चरणों में अर्पित की।
इक्कीस मनकों की माला हमने प्रभु चरणों में अर्पित की।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
चाय सिर्फ चीनी और चायपत्ती का मेल नहीं
चाय सिर्फ चीनी और चायपत्ती का मेल नहीं
Charu Mitra
मंत्र: पिडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
मंत्र: पिडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
Harminder Kaur
शुरुआत जरूरी है
शुरुआत जरूरी है
Shyam Pandey
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
लक्ष्य जितना बड़ा होगा उपलब्धि भी उतनी बड़ी होगी।
लक्ष्य जितना बड़ा होगा उपलब्धि भी उतनी बड़ी होगी।
Paras Nath Jha
सावन मास निराला
सावन मास निराला
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
VINOD CHAUHAN
मेरे होंठों पर
मेरे होंठों पर
Surinder blackpen
* विजयदशमी *
* विजयदशमी *
surenderpal vaidya
मैं जान लेना चाहता हूँ
मैं जान लेना चाहता हूँ
Ajeet Malviya Lalit
जो हमने पूछा कि...
जो हमने पूछा कि...
Anis Shah
कोई पूछे की ग़म है क्या?
कोई पूछे की ग़म है क्या?
Ranjana Verma
मानवीय संवेदना बनी रहे
मानवीय संवेदना बनी रहे
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
Loading...