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11 Sep 2019 · 2 min read

धार्मिक आयोजन या नासूर?

आजकल हमारे देश में लोग कुछ ज्यादा ही धार्मिक होते जा रहे हैं। हर मजहब के लोग बढ़-चढ़कर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते नजर आते हैं। मानो एक होड़ सी लगी हो कि कौन कितना बड़ा आयोजन कर बाजी मारेगा। इसका जीता जागता उदाहरण है रोजाना सड़कों पर होने वाले धार्मिक आयोजन।

अक्सर देखने में आता है कि सड़कों को घेरकर टेंट लगाए जाते हैं। यही नहीं, बड़े-बड़े कान फोड़ लाउडस्पीकर लगाकर खूब शोर-शराबा किया जाता है। एक तरफ इससे ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है, वहीं दूसरी तरफ लोगों की नींद भी खराब होती है। आयोजन स्थल के आसपास अस्पताल और ऐसे मकान भी होते हैं जहां मरीजों को आराम की जरूरत होती है। ऐसे आयोजन कई कई दिन या सप्ताह भर भी चलते हैं।

ऐसे में विचार करने वाली बात यह है कि घिरी हुई सड़क से आम लोगों को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सोचिए, एंबुलेंस से अगर कोई गंभीर मरीज जा रहा है और रास्ता घिरा हुआ है तो क्या होगा? मेरा मानना तो यह है कि जिस काम से किसी इंसान को तकलीफ पहुंचे, वहां पर धर्म खुद ही खत्म हो जाता है।

सड़कों पर लगने वाले टेंटों से जाम की समस्या पैदा होती है। नतीजा यह होता है कि लोग रास्ता बदल कर गलियों का रुख करते हैं। फिर गलियों में भी वाहनों की आवाजाही बढ़ती है। आम लोगों को दो पहिया वाहन, यहां तक कि पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।

प्रशासन भी ऐसे आयोजकों के सामने नतमस्तक रहता है। इसका तर्क यह है किसी भी आयोजन की अनुमति रात को 10 बजे के बाद नहीं दी जाती है। इसके बावजूद ज्यादातर धार्मिक आयोजन देर रात ही शुरू होते हैं। वैसे भी आमतौर पर रात 10 बजे की बात अनुमति देने का प्रावधान नहीं है।

हर समय, दिन हो या रात पुलिस पिकेट हर जगह मौजूद रहती हो। हैरत की बात यह है कि पुलिस प्रशासन के सामने बिना अनुमति तमाम धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं लेकिन प्रशासन अपना फ़र्ज़ यह भी नहीं समझता कि एक बार अनुमति को भी जांचा जाए। अगर यह सब इसी तरह चलता रहा तो एक दिन वह आएगा कि इस तरह के आयोजन आम आदमी के लिए नासूर बन जाएंगे।

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 4 Comments · 170 Views
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