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3 May 2017 · 1 min read

धारण कर सत् कोयल के गुण

जागा अधिवक्ता पतला सा
त्यागे तन के कीमती वस्त्र
ले हाथ छड़ी जिस ओर बढा
पीछे-पीछे पग थे सहस्त्र
अनुपम- अतुलित बल का उद्भव
आज अहिंसा में है देखा
यह भ्रम या धूल भरी आंधी
या सपना कोई अनदेखा
बैरी बोले भागो-भागो
देवत्व हमें ललकार रहा
प्रेम-फाँस के प्रबल बार से
राक्षसी वृत्ति संहार रहा
घर गया शिकारी बेबस हो
बन गया महात्मा राष्ट्रपिता
ईश्वरत्व रवि प्रखर हो गया
बद् कृत्यों की जल गई चिता
“नायक बृजेश” तुम देवपुरुष
वैचारिक दर्शनरूप सगुण
निश्चय होगी शांति, स्वयं में
धारण कर सत् कोयल के गुण
…………………………………………………….

●उक्त रचना को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।

● पूरी रचना पढने के लिए “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण का अवलोकन करें।

●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
03-05-2017

Language: Hindi
1006 Views
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