धर्म क्या है…?
धर्म विराजत है
सत्य, दया ,तप
दान पर
जीव के कल्याण पर
दयाशील के गुणगान पर
प्रेमी के सम्मान पर ।
धर्म ना भौतिक शक्ति है
ना ही बाहु बल रूप
धर्म ना व्यक्ति अभिमान है
ना ही पाखंडी स्वरूप ।
पंच तत्व का मेल है
धर्म का हर रूप
भिन्न भिन्न चाहे कहो
ब्रह्म एक स्वरूप ।
धर्म धारण करता है
प्रेम का हर रूप
भौतिकता रच देती है
उसका कुत्सित स्वरुप ।
धर्म विचार युक्ति है
समाज की अभिव्यक्ति है
मानवता की शक्ति
आध्यात्मिक स्थिति है ।
धर्म एक उद्देश्य है
जियो जीने दो का
सन्देश है
बंधित्व का प्रचार है
मानवता की जय जयकार है ।
धर्म सेवा भक्ति है
सत्य की आत्मशक्ति है
कर्तव्यपरायण आधार है
व्यक्ति का अधिकार है ।
क्रोध का निर्वात है
सूक्ष्मता का आभाष है
लालच की निवृत्ति है
स्वयं का साक्षात्कार है ।
कर्मकांड निराधार है
ज्ञान का अत्याचार है
लालच की तलवार है
धर्म पर प्रहार है ।
कर्मकांड बदलता है
भौगोलिक आधार पर
मनुष्य का व्यवसाय पर
धर्म निश्चित रूप है
आदि ब्रह्म प्रतिरूप है ।