‘धरती पुत्र किसान’
न धूप कभी विचलित करती,
न छाँह कभी आलस भरती।
संतोष सदा गहना जिसका,
वह देशरत्न कोई और नहीं।
वह धरती-पुत्र किसान है।
चाहे अतुलित बरसातें हों,
सूखे का प्रचण्ड प्रहार रहे।
फसल मिटे या घर मिट जाए।
विश्वास ही छत रहता जिसका,
वह धरती-पुत्र किसान है ।
चिड़िया की चहकन से पहले,
सूरज की दहकन से पहले।
गोधूलि की शुभ बेला में,
मंदिर-मंदिर घण्टे बजते हों।
या फिर मस्ज़िद अज़ान हो,
हृदय-ईष्ट बसता जिसका,
वह धरती पुत्र किसान है।
रूखी-सूखी स्वयं खाकर,
देता अन्न सदा हमें कमाकर।
चूल्हा स्वयं का जले-न-जले,
सबका चूल्हा ‘मयंक’ जलाना।
परोपकारी भावों से सज्जित,
ध्येय अमिट रहता जिसका,
वह धरती पुत्र किसान है ।