धरती का क्षोभ
धरती का दर्द आसमान ने पूछ लिया ।
खुश थी बहुत ,यह हाल क्या कर लिया ।
महकती लहलहाती थी तुम्हारी खेतियां,
हर तरफ खुशी ,बहारों सी थी मस्तियां ।
सुनकर आसमान का सवाल धरती रोई ,
कैसे बयां करे अफसाना उलझन में खोई।
छुपा करते है आंखों में दिल के अफसाने ,
धरती का दर्द तुरंत जान लिया आसमान ने ।
कहा” हे धरती ! बोल तेरी चेतना कहां है,
शक्ति का अवतार है तू ,बेशक एक मां है ।
जब तक मानवता इस संसार में जीवित है ,
तू सब प्राणियों के लिए ममतामई मां है ।
मगर जब हो गया यहां हैवानियत का राज ,
सहनशीलता त्याग कर दिखा दे क्रोध आज ।
तेरा क्रोध सुन ढा सकता है कहर अब यहां,
विनाश ही विनाश होगा देखेगा मानव यहां।
कांप उठेगी तब रूह उसकी ,जागेगा इमां ,
पछताएगा अपनी करनी पर मांगेगा क्षमा।
तत्पश्चात प्रलय के बाद ही नव सृजन होगा,
नवयुग में तेरी जीवन में आनंद ही आनंद होगा ।