धन और प्यार
? ?गुणीजनों के समीक्षार्थ ??
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मुझे प्यार उनका पुकारता रहा है।
बुला पास दृग से उतारता रहा है।
निर्धन था माना मैं जन्मों से लेकिन।
मगर हाल मेरा वो जानता रहा है।
मुहब्बत में धन की जरुरत ही कैसी।
मगर धन मुहब्बत क्यों मांगता रहा है।
सुना है मुहब्बत खुदा की इबादत।
मुहब्बत से फिर क्यों वो भागता रहा है।
कि मैनें कहा प्यार मुझको भी तुम से।
मगर बातें मेरी नकारता रहा है।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”