द्रौपदी का हो रहा शोषण
गीतिका-
आधार छंद- मनोरमगा(मापनी युक्त मात्रिक)
मापनी- गालगागा गालगागा गा
2122, 2122, 2
समांत- आनी, पदांत- है
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आज सबकी यह कहानी है।
शुष्क मुखड़ा,आंख पानी है।(१)
आब ठहरा नहिं हमेशा यह,
उमड़ती, ढलती जवानी है।(२)
कारवां गुज़रा बगल से ही,
मगर दिल में बस विरानी है।।(३)
मर रहे हैं आदमी देखो,
ये व्यथा मुझको सुनानी है।(४)
द्रौपदी का हो रहा शोषण,
बात यह सबको बतानी है।(५)
चेहरे में है छुपा सब कुछ,
मगर दिखती बस ना’दानी है।।(६)
सोचता है अब अटल यारों,
हाले दिल किसको दिखानी है।।(७)