दो सुकूं के ही पल अब दिला दीजिए
212 212 212 212
क्या खता है मिरी अब बता दीजिए।
है खता गर मिरी तो सजा दीजिए।।
प्यास बढती ही जाती है पल पल मिरी,
अब तो आंखों से थोड़ा पिला दीजिए।
राह-कांटों भरा है चुना आपने
हमको इसका न अब तुम गिला दीजिए।
तन से तन तो मिला इस जनम में नहीं,
रूह से रूह को अब मिला दीजिए।
खूब तड़फा है पल पल यहां पर अटल,
दो सुकूं के ही पल अब दिला दीजिए।
?अटल मुरादाबादी ?