दो दिल मिल रहे हैं
दो दिल मिल रहें हैं
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दो दिल मिल रहें हैं
मगर डरते डरते
कोरोना ना हो जाए
यूँ ही चुपके चुपके
जग में छाया कोहरा
कोरोना बना मोहरा
धीरे धीरे खांस रहे है
यूँ ही डरते डरते
मन में प्रेमभाव आए
कोरोना से हैं घबराए
हवाई प्रेम कर रहे हैं
थोड़ी दूरी बना करके
बुझे – बुझे से हैं चेहरे
मिलते हैं अंधेरे अंधेरे
हवा से भी डर रहे हैं
प्रेम राह चलते चलते
यार को आती खांसी
जान चढ़ जाती फांसी
कुहनी पे खांस रहे हैं
फैलने से बचते बचते
शादी का आए ख्याल
डर से होता बुरा हाल
कोरोना ना मिल जाए
प्रेम राह के रस्ते रस्ते
सुखविंद्र भी परेशान
सूली पर टंगी है जान
हम फिर भी बढ रहे हैं
काँटो भरे दिल के रस्ते
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)