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11 Sep 2018 · 2 min read

दोहे

लेकर धजा विकास की , उड़ा गगन में यान !
भूखे प्यासे ताकते , उसको सीना तान !!

मिले शाम को शेर से , वन के सभी सियार !
किए गए आखेट पर , हो आधा अधिकार !!

चली गबन पर बात वो , बोला आँख तरेर !
बकरी चरती पास में , कैसे सोए शेर !!

कलम और शमशीर में , रही सदा से रार !
रुके न इसके लेख तो , थमे न इसके वार !!

नगद लिया फिर दे दिया , सारा माल उधार !
कहते हैं अब लोग ये , गई शराफत मार !!

धीरज कहे विवेक से , मत खोना तू होश !
बेबस होकर क्रोध अब , गया जगाने जोश !!

हमने खुद तकनीक के , दे दी हाथ नकेल !
अब बचपन को लीलता, मछ्ली वाला खेल !!

चोर गया परदेश में , लूट वतन का माल !
टीवी पर विद्वान अब , बजा रहे हैं गाल !!

रोटी दिखला भूप ने , भरा बात से पेट !
भूखों खातिर कब खुला , बंद महल का गेट !!

संकट सैनिक शीश अब , विपद में कृषक पाग !
राजा फिरे अलापता , बस अपना ही राग !!

कहकर यूँ भावुक हुए , सेठ किरोड़ी लाल !
धन मिला पर मिली नहीं , सुख की राेटी दाल !!

मेरी ये तकदीर भी , निकली बड़ी अजीब !
अपनों ने मारा तभी , छाया हुई नसीब !!

मरे पूस की शीत में , फुटपाथों पर लोग !
जेठ मास में जाँच को , हुआ गठित आयोग !!

मन के भावों का हुआ , निज हित पर टकराव !
उस दम मरा विवेक भी , करते बीच बचाव !!

बातों से बनती नहीं , जब भी कोई बात !
हो जाता तब लाजिमी , बतलाना औकात !!

खेल सियासी देखकर , होता बहुत मलाल !
एक ताँत खातिर करें , जिसमें सांड हलाल !!

नाप जोख करते समय , देखा खेल अजीब !
हाकिम के संकेत पर , बढ़कर घटी ज़रीब !!

Language: Hindi
415 Views
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