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14 May 2018 · 1 min read

दोहे

दोहा सलिला:
*
अनिल अनल भू नभ ‘सलिल’, पंचतत्वमय सृष्टि।
मनुज शत्रु बन स्वयं का, मिटा रहा खो दृष्टि।।
*
‘सलिल’ न हो तो किस तरह, हो निर्जीव सजीव?
पंचतत्व संतुलित रख, हो शतदल राजीव।।
*
जीवन चक्र चला सलिल, बरसे बह हो भाप।
चक्र रोककर सोचिए, जी पाएँगे आप?
*
सलिल न तो मरुथल जगत, मिटे किस तरह प्यास?
हास न होगी अधर पर, शेष न होगी आस।।
*
अगर चाहते आप हो, सकल सृष्टि संजीव।
स्वच्छ सलिल-धारा रखें, खुश हों करुणासींव।।
*

Language: Hindi
335 Views
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