दोहे
फिर तिलक लगे रघुवीर ….
अंग-अंग सारा टूटता,छलनी हुआ शरीर
कब छोड़ोगे बोलना ,अपना है कश्मीर
जग सारा अब जानता,’पाक’ नही करतूत
भीतर से हर आदमी,छिपा हुआ बारूद
जिस झंडे की साख हो ,बुलंद सितारे-चाँद
झुक क्यूँ आखिर वो रहा,शरीफजादा मांद
याद करें दिन काश वो ,तरकश हो बिन तीर
तुलसी दास चन्दन घिसय ,तिलक लगे रघुबीर
हिम्मत से अब काम लो ,ताकत करो जुगाड़
जिस भाषा जो बोलता ,उसमे करो दहाड़
निर्णय को अब बाँट दो,जहाँ दिखे अतिरेक
शान्ति या कोलाहल में,चुनना कोई एक
परिचय अपना जान लो ,पाकिस्तानी लोग
बीमारी उपचार भी ,जान-लेवा हम रोग
सठियाये हो पाक जी ,बोलो करें इलाज
आतंकी की गोद उतर ,चल घुटने बल आज
बेहद सुशील बोलता ,सीमा-सरहद छोड़
सुलझा मन की घाटियाँ ,ऊबड़-खाबड़ मोड़
सुशील यादव
1st Oct 16
susyadav444@gmail.com
इस सूरत का आदमी,पायें कभी-कभार
बिना-गिने ही नोट को,सौपे गंगा धार
की थी हमने नेकियां,नोट कुएं में डाल
उस नेकी की फाइलें ,पुलिस रही खंगाल
पन्ने बिखरे अतीत के ,सिमटा देखा नाम
बैठी रहती तू सहज ,पलक काठ गोदाम
हमको तुमसा आदमी,मिलता कभी-कभार
बिना जान पहिचान के ,देता नोट उधार
नोट-काले जेब रखे ,उजली बहुत कमीज
तू भी राजा सीख ले ,धनवान की तमीज
दोहे.. आगामी चुनाव से …
बेटे से पद छीनता,कितना बाप कठोर
यौवन ययाति सा मिले,बात यही पुरजोर
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पिता पुत्र से बोलता ,देखो वीर सपूत
सायकल तुझे सौप दूँ ,और निकाल सबूत
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सब की है ढपली यहाँ ,सबके अपने राग
ढोल-नगाड़े पीटना ,सुर जाए जब जाग
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महसूस नहीं हो हमे ,कतरो ऐसे पंख
महा-समर आरंभ हो ,बज जाए फिर शंख
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फिर चुनाव आना हुआ,निकले वन से राम
हर बगल है छुरी दबी,रखो काम से काम
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मानवता की आड़ में,दानव रहा दहाड़
आशंकाओं का कहीं, गिरे न मित्र पहाड़
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सुशील यादव
9.1.2017
सायकिल छाप दोहे
आज आदरणीय परम,रूठ गए हैं आप
लायक अपने पूत से ,रूठा करता बाप
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आहत मन से देखते ,कुछ अनबन कुछ मेल
सायकल की अब मान घटी ,पटरी उतरी रेल
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बेटा करता बाप से ,विनती और गुहार
दिलवा दो अब सायकिल ,पंचर दियो सुधार
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लिखने वाले लिख रहे ,तरह तरह आलेख
सबके अपने मन-गणित,अलग-अलग उल्लेख
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विकसित होते राज में,है विकास की गूंज
एक दूजे टांग पकड़,तंदूर वहीं भूंज
सुशील यादव
८.१.१७
Dohe
कॉलर नही कमीज में,पेंट नही है जेब
नँगा होने तक रचो,कोई नया फरेब
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उम्मीदों के दौर में ,तुम भी पालो ख़्वाब
कैशलेस हो खोपड़ी,’बाबा छाप’खिजाब
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पंछी बैठे छाँव में,उतरा दिखे गुरूर
आसमान ऊंचाइयां,कतरे पँखो दूर
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साल नया है आ रहा,हो न विषम विकराल
संयम उर्वर खेत में, बीज-व्यथा मत डाल
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घटते-घटते घट गया ,पानी भरा तलाब
तनिक ओस की चाह में ,चाटो अपने ख्वाब
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मानवता की आड़ ले ,दानव की है चीख
आज खाय भर-पेट तू ,कल को मागो भीख
आज खाय भर पेट हैं ,कल को मागे भीख
भाई तेरे राज में ,इतनी मिलती सीख
क्या खोया क्या पाया ….
कुनबा सभी गया बिखर,बनता तिनका जोर
एक अहम आंधी उठी,चल दी सभी बटोर
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मेरे घर में जोड़ का ,कुछ तो करो उपाय
नासमझी नादान की ,कहीं समझ तो आय
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गया जमाना एक वो ,अब है दूजा दौर
जग वाले थे पूछते ,बाते घर की और
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नोट
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माया कलयुग में जहां ,दिखे नोट की छाप
सार दौलत बटोर के ,हुए वियोगी आप
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इस सूरत का आदमी,पायें कभी-कभार
बिना-गिने ही नोट को,सौपे गंगा धार
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दंगल दिखा कमा गए ,भारी भरकम नोट
प्रभु हमारे दिमाग वो ,फिट कर दो लँगोट
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नोट-काले जेब रखे ,उजली बहुत कमीज
तू भी राजा सीख ले ,धनवान की तमीज
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कितनी है संभावना ,फैला देखो पाँव
सीमित होती आय की,चादर जिधर बिछाव
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ज्ञान जला तन्दूर
मंजिल तेरी पास है ,ताके क्यूँ है दूर
चुपड़ी की चाहत अगर , ज्ञान जला तंदूर
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जिससे भी जैसे बने ,ले झोली भर ज्ञान
चार दिवस सब पाहुने ,सुख के चार पुराण
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तीरथ करके लौट आ,देख ले चार धाम
मन भीतर क्या झांकता ,उधर मचा कुहराम
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मिल जाये जो राह में, साधू -संत -फकीर
चरण धूलि माथे लगा ,चन्दन-ज्ञान-अबीर
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आस्था के अंगद अड़े ,बातों में दे जोर
तब -तब हिले पांव-नियम ,नीव जहाँ कमजोर
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तिनका तिनका
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तिनका-तिनका तोड़ के ,रख देता है आज
बस्ती दिखे अकड़ कहीं ,फिजूल कहीं समाज
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परिभाषा देशहित की ,पूछा करता कौन
बहुत खरा एक बोलता ,दूजा रहता मौन
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भव-सागर की सोचते ,करने अब की पार
लोग के हम चुका रहे ,गिन-गिन कर्ज उधार
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गया उधर एक मालया ,हथिया के सब माल
किये हिफाजत लोग वे ,नेता, चोर, चंडाल
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देश कभी तू देख गति ,है इतनी विकराल
यथा शीघ्र सब जीम के ,खाली करो पंडाल
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मुह क्यों अब है फाड़ता ,कमर तोड़ है दाम
किसको कहते आदमी ,चुसा हुआ है आम
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