दोहा गजल
हिय में करते वास हैं ,सदा अवध पति राम ।
पल पल तेरे साथ हैं छोड़ जगत के काम।
सीता को हर ले गया ,महा दुष्ट लंकेश,
जड़ जंगम से पूछते ,विकल हृदय ले नाम।
वन -वन खोजें रामजी ,साथ वीर हनुमान,
किया बालि वध मित्र हित, करें धर्म का काम।
लंकापति का अहं भी ,कर न सका प्रतिकार,
मेघनाद के लक्ष्य से ,अविजित कर संग्राम ।
तिलक विभीषण का किया, बना उसे लंकेश,
शरणागत वत्सल हुये, वनवासी अभिराम ।
कुल नाशक रावण मरा, हुआ अहम का अंत,
करें विभीषण पर कृपा, रक्षित को दे धाम।
भेज दिया श्री राम ने, अनुज ज्ञान के हेतु,
कहे दशोमुख” प्रेम” से ,जय जय जय श्रीराम।
डा. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”