दोस्ती
दोस्तों को दोस्ती का क्या सिला दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सिला दूँ
बचपन के दोस्तों के तो क्या कहने
पचपन की उम्र में भी हैं साथ रहने
मिल जाए गर कहीं तो याद करां दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सिला दूँ
पहली दफा मिले थे तो जानते न थे
एक -दूसरे को भी पहचानते न थे
अब है ये आलम यार पर जान वार दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सिला दूँ
बातें शरारतें जो की, सदा याद रहेंगी
जवानी की फजीहतें कभी न भूलेंगी
जीवन की हर उमंग यारों पर वार दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सिला दूँ
जीवन के सुख दुख को है साथ झेलते
मिले न कुछ दिन तो दिल से हैं ढूंढते
यारों की यारी पर यारों जान वार दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सिला दूँ
दोस्तों को दोस्ती का क्या सिला दूँ
उनसे मिले प्यार का मैं क्या सीला दूँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत