दोस्ती भूल गया है शायद
ज़ख़्म अब तक न भरा है शायद
दर्द पहले से सवा है शायद
सांस कुछ तेज़ अभी लगती हैं
दिल में तूफ़ान उठा है शायद
बेअसर सी हैं दुआयें सारी
दिल किसी का तो दुखा है शायद
देखता ही वो नहीं मुड़कर के
दोस्ती भूल गया है शायद
सिलसिला ख़त्म हुआ लगता है
फ़ासला कुछ तो बढ़ा है शायद
ज़िन्दगी उसके बिना अब मेरी
जैसे ‘आनन्द’ सज़ा है शायद
– डॉ आनन्द किशोर