दोष किसका…???
दोष किसका…???
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सन् 1989 डी.एम.एकेडमी बगहा हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा का सेन्टर। हम सभी मित्र बड़े ही जतन के साथ परीक्षा स्थल पहुंचे।
हृदय में ठोड़ी सी चिंता या यूँ कहें बोर्ड परीक्षा के मिथक को लेकर अंजाना सा डर तो अग्रिम भविष्य को लेकर सुखद अनुभूति व उमंग का मिलाजुला एहसास।
परीक्षा अपने समयानुसार प्रारंभ हुआ , परीक्षा भवन में इतनी शान्ति थी कि अगर एक सूई भी गिरे तो उसकी भी आवाज साफ- साफ सुनाई दे वहीं विद्यालय के चारोतरफ कोलाहल एवं भगदड का बातावरण ।
अपने बच्चे की सुखद भविष्य एवं अच्छे नंबरों से पास होने की लालसा लिये कुछ अभिभावक नकल उनतक कैसे पहुचाई जाय इस जुगत में परेशान हाल चहलकदमी करते देखे जा सकते थे।
कुछ अपने मनसुबे मे कामयाब हो फूले नहीं समा रहे थे तो कुछ अपनी असफलता पे खुद को ठगा सा महसूस कर रहे थे।
जैसे तैसे पहले दिन का पेपर समाप्त हुआ पेपर था पृथ्वी परिचय( भूगोल) का।
जैसे ही हम सभी परीक्षार्थी बाहर निकले अभिभावकों का हुजूम हमारी तरफ सवालिया चेहरे लीए आगे बढा। उनके प्रश्नवाचक चेहरे पर जैसे स्पष्ट पढा जा सकता हो…
सबका एक ही प्रश्न कैसा रहा आज का पेपर।
अभी हम कुछ बताते तभी बगल में एक परीक्षार्थी का जवाब सुन कर हतप्रभ रह गये।
वह लड़का बोल रहा था
बाऊजी तु जवने चीटवा भेजे रहलह ओका हम अच्छे से लिख दीयेन है
फिर थोड़ा चेहरे पर परेशानी का भाव लिए जो शब्द उसने बोले सुन कर पाव तले जमीन खीसक गई।
बाऊजी चीट तो लिख दीयेन पर एक काम रह गईल।
बाऊजी- का बाकी छोड़ दीहीस?
लड़का – वोह चीट मा जवने मोहर लगा रहे वोहका त तु भेजे ही ना।
बाऊजी – *आश्चयचकित होकर ) मोहर??
कवने मोहर?
लडका- वोह चीटवा में एक मोहर लाग रहा।
अगर मोहर भेजे होत त लग जात।
बाऊजी परेशान खड़े रहे फिर सजग हो अपना पौकेट चेक किए।
दो पेपर जिसपे कुछ सवालों के जवाब लिखे हुये थे उनके पौकेट से निकला।
फिर दुखी होकर बोले
अरे बाबू जल्दी जल्दी में नकलवा त हमरे पौकेट में ही रह गवा जो हम तोहका भेजे रहे वो सीमेंट का परमिट रहा।
दोनों एक दूजे को दोष मढते हुये आगे नीकल गये और मै वहीं किंकर्तव्यबिमुढ यह यह सोचता रहा की अभी जो कुछ भी घटा है इसमे दोष किसका है; उस लडके का या उनके पिता का।
ऐसी डीग्री किस काम की ।
क्या आप बता सकते हैं?
वैसे मैं बता दूं आज वहीं लड़का आरक्षण के बलबुते शिक्षक बन विद्यालय की शोभा बढा रहा है।