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8 Jul 2021 · 7 min read

दोराहा

दोराहा
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अभिनव देख लो आज वही तेरे जीवन रूपी नैया को किनारे लाई जिसे तू अबतक बेवफा कहता रहा, जिसका शक्ल भी देखना तुझे गवारा नहीं था।
भाई एक बात तो माननी पड़ेगी जो लोग सत्यता को बिना परखे किसी भी घटना को सत्य मानकर बिना बिबेक इस्तेमाल किये, जीवन में महत्वपूर्ण फैसले लेने का कार्य करते हैं, उन्हें एक न एक दिन ऐसे ही अपराधबोध से ग्रसित होना पड़ता है…..मुकेश बड़े ही दुखी लहजे में अपने बचपन के दोस्त को संबोधित कर रहा था, जबकि अभिनव सजल नेत्रों से एकटक मुकेश की ओर मुखातिब हो उसकी बाते सुन रहा था ….।

नवजीवन प्राप्त होने के उपरांत भी आज अभिनव का चेहरा भावविहीन था, आँखें निस्तेज हो चली थीं, जैसे सोच रहा हो काश..! हमने स्व बिबेक से समय रहते सत्यता को परखा होता तो, शायद आज दोराहे पर खड़े न होते।
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कालेज का पहला दिन, अभिनव और मुकेश एक ही बाईक से काले में प्रविष्ट हुए…. आज दोनों ही अत्यधिक प्रफुल्लित नजर आ रहे थे, हों भी क्यूँ न शहर के सबसे बेहतरीन कालेज में दोनों को एडमिशन जो मिल गया था। वैसे यहाँ इन्हें एडमिशन मिलना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी , दोनों ही अति मेधावी छात्र थे अपने पूर्व के विद्यालय में बेहतरीन अंक से उतीर्ण होने के पश्चात ही उन्हें इस कालेज में एडमिशन मिला था।

शाम्भवी कालेज नहीं जाना क्या बेटा…..प्रतीक बाबू ने अपनी इकलौती बेटी से मुखातिब होकर प्रश्न पूछा!
जाना है पापा..शाम्भवी ने जवाब दिया ।
फिर देर किस बात की बेटा, जल्दी करो मैं ऑफिस जा रहा हूँ, तुम्हें छोड़ते हुये निकल जाऊंगा, और हा! कालेज का पहला दिन है नर्वस नहीं होना, माना जगह नया है, लोग नये मिलेंगे, टीचर्स नये होंगे पर इन सबको तुम्हें अपने साँचे में ढालना पड़ेगा। प्रतीक बाबू अपनी बिटिया को बड़े प्यार से समझा रहे थे।

शाम्भवी ने सरस्वती शिक्षा निकेतन से दसवीं की परीक्षा सपूर्ण प्रदेश में प्रथम रहते हुए उतीर्ण किया धा और आज शहर के सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित कालेज में एडमिशन मिलने के बाद पहले दिन कालेज जा रही थी।
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किसी भी व्यक्ति के लिए शिक्षा ग्रहण के वो कुछ वर्ष स्वर्णिम वर्ष होते है जो शायद बाकी तमाम जीवन जीने के लिए काफी होता हैं, यही वह समय होता है जब हमें कुछ ऐसे मित्र मिलते है, जो खुद को, खुद से प्रिय लगने लगते है,…..जहाँ एक ओर एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धात्मक होड़ रहती है, वहीं एक दूसरे के लिए जान निछावर कर देने का जज्बा। सही अर्थो में इस उम्र में इमानदार प्रतिस्पर्धा हमारे बीच प्रेम, सामन्जस्य, एवं समर्पण जैसी भावनाओं को जन्म देता है।

कुछेक लड़के लड़कियों को छोड़कर लगभग सभी बच्चे नव नामांकन के द्वारा ही यहाँ आये थे जिसके कारण सभी एक दूसरे से अनभिज्ञ एवं अपरिचित थे। जैसे – जैसे समय बीतता गया सभी एक दूसरे के करीब और करीब आते गये, परन्तु शाम्भवी अबतक किसी भी लड़के एवं लडकियों से तनिक भी घुलमिल नहीं पाई थी…वह थी भी, थोड़ा संकोची स्वभाव की।
ऐसे लोग अतिशीघ्र ना तो किसी के दोस्त बनते है और ना ही किसी के दुश्मन।
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समय की अपनी गति है जो पर लगे पंछी की तरह उड़ता चला जाता है।

समय के साथ अभिनव और शाम्भवी धीरे – धीरे एक दूसरे के करीब आते चले गए पहले दोस्ती, और कुछ समय पश्चात इन दोनों के हृदय रूपी पुष्प वाटिका में प्रेम रूपी पुष्प का खिलना किसी से छुपा न रह सका। कल के दो अजनबी आज दो वदन एक जान बने हुए थे। अब तो आलम ऐसा था कि एक को देखें बिना दूसरे की दिन का श्री गणेश होना भी मुमकिन नहीं लगता। भावी भविष्य के सुनहरे स्वप्न देखना एवं एक दूजे को गले लगा कर कसमें खाना तो जैसे हर दिन की बात थी।

अभिनव कल्पना लोक में खोया अतीत के पन्ने टटोल रहा था तभी अचानक संपूर्ण शरीर में सिरहन सी दौड़ गई, धमनियों में रक्त का प्रवाह तेज हो चला। उसके आंखों के समक्ष वह मनहूस दृश्य चलचित्र की भांति चलने लगा।
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उस दिन शाम्भवी कालेज नहीं आई थी जिस कारण अभिनव का मन कहीं भी नहीं लग रहा था, यहां तक कि वह वह क्लास बीच में ही छोड़ कर कक्षा से बाहर निकल गया। मित्र को उदास देख मुकेश भी कुछ क्षणोपरान्त कक्षा से बाहर आ गया।

क्या बात है भाई क्लास बीच में ही छोड़ कर क्यों चला आया, आज इतना उदास क्यों है? मुकेश ने प्रश्न पुछा!

यार पता नहीं क्यों, मेरा मन बहुत घबरा रहा है, शाम्भवी आज कालेज नहीं आई, कोई मैसेज भी नहीं दिया। इससे पहले आज तक कभी भी जब से हम एक दूसरे के प्यार में पड़े हैं ऐसा नहीं हुआ।

यार ! इसमें उदास होने, या घबराने जैसी कौन सी बात है? कल आयेगी तो पुछ लेना, चलो क्लास एटेन्ड करते हैं।

नहीं भाई; तू जा मैं घर जा रहा हूँ।

मुकेश को वहीं छोड़ कर अभिनव घर निकल पड़ा आधा रास्ता ही तय हुआ होगा अभिनव को शाम्भवी एक हम उम्र नवयुवक के साथ जाते दिखी, अभिनव के मन में शंका के कीड़े कुलांचे मारने लगे, उसने तुरंत ही एक ऑटोरिक्शा किया और शाम्भवी के मोटरबाइक के पिछे हो लिया कुछ ही दूर जाने के बाद वे दोनों एक रेस्तरां में प्रवेश कर गये। अभिनव भी ऑटो वाले को किराया चूका कर रेस्तरां में प्रवेश कर गया।

शाम्भवी उस लड़के के साथ बैठी थी, दोनों खूब हंस खिलखिला रहे थे कुछ क्षणोपरान्त वे दोनों वहां से नास्ता कर निकल गये। अभिनव भी कुछ देर भाड़े की सवारी से उनका पीछा करता रहा और यह सिलसिला शाम्भवी के दरवाजे पर जाकर तब समाप्त हुआ जब अभिनव ने उस नवयुवक को शाम्भवी का का माथा बड़े ही प्यार से चूमते देखा। वह नवयुवक शाम्भवी का माथा चूमने के बाद अपनी मोटर बाइक से आगे निकल गया और शाम्भवी कुछ देर तक हाथ हिलाकर उसे जाते देखती रही और जैसे ही वह युवक नज़रों से ओझल हुआ वह भी घर के अंदर चली गई।

अपने आंखों के सामने घटित इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को अभिनव एकटक देखता हुआ खुद को ठगा ठगा सा महसूस कर रहा था। कुछ क्षणोपरान्त बोझिल कदमों से हारे हुए जुआरी की तरह अभिनव अपने घर की चला आया।
सुबह जैसे ही शाम्भवी कालेज आई पहले तो अभीनव उससे कल की घटनाक्रम के सम्बद्ध बात करना चाहा फिर कुछ सोच कर रुक गया, यह जानने के लिए की देखते हैं वह खुद से कुछ बताती है या नहीं।

संपूर्ण दिवस बीत गए किन्तु शाम्भवी ने कल के संबद्ध कुछ भी बात नहीं किया।

कभी – कभार छोटे-छोटे पहलु इंसानी जीवन को तीतर – बीतर कर जाते हैं, और आज भी यहीं हुआ, कल के उस वाक्या को लेकर अभिनव शाम्भवी से कटा- कटा सा रहने लगा, बात – बात पर उसे जली- कटी सुनाने लगा यहां तक की अपने दोस्तों के बीच उसे गाहे-बगाहे अपमानित भी करने लगा। सच कहें तो अभिनव के मनोमस्तिष्क ने शाम्भवी को चरित्रहीन का तमगा दे दिया था। अपरोक्ष रूप से अभिनव उसे चरित्रहीन मानने भी लगा था। अभिनव का यह बदला हुआ व्यवहार शाम्भवी को नागवार गुजरा उसने कइएक बार जानना चाहा पर अभिनव हर बार उसे अपमानित कर कुछ भी बताने से साफ इंकार कर देता।

धिरे – धिरे दो चाहने वाले दिल गलतफहमी का शिकार हो जुदा होते चले गए। दोनों ही खुद में खोये रहने लगे। जिसका असर इनके स्वास्थ्य पर भी पड़ा‌। पिता के भरपूर लाभ- दुलार के फलस्वरूप शाम्भवी तो सम्भल गई किन्तु—–

अभिनव के दोस्तों ने, विशेष कर मुकेश ने, उसे समझाने का हर संभव प्रयास किया परन्तु अभिनव कुछ भी समझने या मानने को तैयार नहीं हुआ। और वह दिन भी आया जब अभिनव ने शाम्भवी से सारे संबंध विच्छेद कर लिए।
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दिल का टूट जाना कभी – कभार जानलेवा भी साबित होता है। अभिनव इस सदमे से उबर न सका और, वह बीमार ; और बीमार होता चला गया। पिछले एक माह से वह शहर के इस बड़े अस्पताल में जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में लगा था, घर की माली हालत भी ठीक नहीं कि इलाज लम्बा चलाया जा सके। एक समय तो ऐसा भी आया जब लगने लगा कि पैसों के अभाव में अभिनव की सांसें थम जायेंगी, तभी मुकेश ने चुपके से यह खबर शाम्भवी को दी।
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शाम्भवी ने अपने पापा से बात कर अभिनव के इलाज का संपूर्ण खर्च अपने सर ले लिया और आज अभिनव पूर्णतः ठीक होकर अपने घर आ गया।
घर आने के बाद मुकेश ने इलाज में लगे खर्च से लेकर उस लड़के जो शाम्भवी के साथ एक बार ही दिखा था, के संबद्ध सबकुछ सिलसिलेवार अभिनव को बताया ।
अभिनव जिस युवक के कारण तुमने अपने ही हाथों अपने प्रेम की अर्थी सजा डाली वह लड़का शाम्भवी के मामा का लड़का है। वह विदेश रहकर पढ़ाई करता है, उस दौरान ही वह स्वदेश लौटा था और शाम्भवी से मिलने आया था, विदेशी परिवेश में रहने के कारण वह तुम्हें कुछ ज्यादा ही फ्रेंक दिखा, और तुमने केवल उस बिना पर शाम्भवी को चरित्रहीन साबित कर दिया, उससे अपना पक्ष तक रखने को नहीं कहा।

तुमने जो कुछ भी किया वह अपराध है, जिसके लिए तुझे कदापि माफ़ नहीं किया जा सकता। फिर भी शाम्भवी से तुम्हारा यह हाल नहीं देखा गया, और उसने अपने पिता से बात कर तुम्हारे इलाज का संपूर्ण खर्च खुद उठाया, और तुम्हें नवजीवन प्रदान किया।

अतः कभी भी बिना सोचे बिना विचारे जो भी इंसान बड़े फैसले लेने का दुस्साहस करता है वह तुम्हारी तरह ही दोराहे पर खड़ा होता है।

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
9560335952

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