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15 Dec 2020 · 1 min read

देश किसानों का है ।

देश है किसानों का
इसको किसानों ने बनाया है
सींचा है इसको पसीने से
इसकी नींव में
खून किसानों ने बहाया है ।

खड़े किए हैं किले-महल
इसके सीने पर
उद्दोग धंधे चल रहे हैं
शस्य पैदावार पर ।

कहता है मनु
जिसका हल धरती उसकी है
ये नेताओं की नही
हलधर के पुरुखों की जमीन है ।

ना समझ जीत लिया
तूने अंगूठों को
एकलव्य नही है
जो सौप दें गुरु दक्षिणा में
तुझको अंगूठों को ।

ये जीत है केबल
पाँच वर्षों की
क्यूँ घमण्ड से अकड़ा है
ये कुर्सी नही पाँच जन्मों की ।

आजादी की लहर तूने नही
पुरुखों ने बहाई है
जनतंत्र देश की इक्षा है
ये ना तेरी लुगाई है ।

हल खींचता है किसान
रस्सी पकड़कर बैलों की
निकालता हैं दाने
तृप्त करने आत्मा
तुझ जैसे एहसान फरामोसों की ।

Language: Hindi
2 Comments · 196 Views
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