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31 May 2018 · 1 min read

है दूर बहुत साहिल पतवार भी ले आना

——ग़ज़ल—–
221-1222-221-1222

उल्फ़त का बगीचा है गुलजार भी ले आना
कुछ फूल भी ले आना कुछ खार भी ले आना

छूटे न कभी मेरे उम्मीद का ये दामन
है दूर बहुत साहिल पतवार भी ले आना

हमनें तो गुजारी है तेरी हिज़्र में ये रातें
मिलने के तो अब दिलबर आसार भी ले आना

तूफां है समुंदर है क़श्ती भी पुरानी है
बस एक कमी है के मझधार भी ले आना

दो दिल को कभी मिलने देंगे न जहां वाले
इसने जो उठा रक्खी दीवार भी ले आना

उसने ये कहा मुझसे मिलना हो अगर “प्रीतम”
तो मीर-ओ-गालिब सा किरदार भी ले आना

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

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