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30 May 2020 · 1 min read

दृष्टि……………

निगाहें अनन्त अनन्य की तलाश में,
जीवन्त दृष्टि की आस में।
सड़क, चौराहे, गलियों से गुजरती हुई,
खेत-खलिहानों को ढूंढती हुई।
अपनों के बीच पंहुचने की आस लेकर,
सांसों को अपने हाथ लेकर।
जीवन जीने की आस लेकर,
मजदूर बनने की फरियाद लेकर।
मजबूरन चिंतन को विवश कर रही है,
अनचाहे भी मन को झकझोर रही है।
हम कैसे और क्यों हैं यहीं ?
घर अपना यहां क्यों है नहीं।
कहलाते हैं प्रवासी,
प्रकृष्ट क्यों नहीं ?
बनाते हैं उन सबको,
सब अपने क्यों नहीं ?
…….सब अपने क्यों नहीं ?
…….सच सपने क्यों नहीं ?

Language: Hindi
5 Likes · 7 Comments · 250 Views
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