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18 Nov 2017 · 1 min read

दूरी बनाम दायरे

दूरी बनाम दायरे

सुन, इस कदर इक दूजे से,दूर हम होते चले गए।
न मंजिलें मिली हमको, रास्ते भी खोते चले गए।

न मैं कुछ बोली तुमसे और न तुम कुछ कह पाए।
गलतफहमियों में ख़ामोशी के दायरे बढ़ते चले गए।

इश्क में चाहतों के घने बादल फटते चले गए।
बेरुखी में पास आने के बहाने घटते चले गए।

न ही चाहतें बची दिल में न अरमान ही रहे।
फकत तेरी जुदाई में,आंसू आंखों से खूब बहे।

नीलम आँखों से सुनहरे ख्वाब ओझल होते चले गए।
हम खुद ही होकर तन्हा,खुद पे बोझिल होते चले गए।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
274 Views
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