दुश्मन न डाले तिरछी नजर
NOV
11
दुश्मन न डाले तिरछी नज़र , मुझको ऐसा दमन चाहिए।
भूखा न हो कोई नागरिक, मुझको ऐसा वतन चाहिए।
फूल खिलते रहें हर तरफ बाग में प्यार के ही सतत अब,
खुशबू से महके ये सारा ,मुझको ऐसा चमन चाहिए।
उड़ सकूँ पॅख बिन उन्मुक्त हो ,मुझको ऐसा गगन चाहिए।
सर झुककर करूँ मैं निवेदन ,मुझको ऐसा नमन चाहिए।
हो न कोई रोग उसमें कभी ,मुझको ऐसा बदन चाहिए।
मुक्त हो जाऊँ दुनिया कीझंझटसे मै,मुझको ऐसा जतन चाहिए।
मरकर भी मैं , हो हो जाऊँअमर ,मुझको ऐसा कफ़न चाहिए।