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7 Jul 2021 · 1 min read

दुर्मिल सवैया आधारित गीत

सखि धीरज भी अब डोल गया, नयना बरसे इस सावन में।
सुख के सपने सब टूट गये, मनवा तरसे इस सावन में।।

तुम दूर गये कब भूल गए, परदेश बसे सुधि लेत नहीं।
मम जीवन के तुम प्रान सुधा, जग आज हसे सुधि लेत नहीं।
निरखे रहिया दृग साँवरिया, किस खोह बसे सुधि लेत नहीं।
तुम्हरे बिन नाग बना विरहा, दिन नित्य डसे सुधि लेत नहीं।

पल एक नहीं इस जीवन में, जियरा हरसे इस सावन में।
सखि धीरज भी अब डोल गया, नयना बरसे इस सावन में।।

उर में उपजे अनुराग सदा, खनके कंगना अब ओ रसिया।
जलधार गिरे निज अंबक से, तुम आन मिलो मन के बसिया।
तुम देश तजे परदेश बसे, मन ढूँढ रहा बस में न जिया।
किस कारण दूर हुए सजना, अब खोज रही तुझको अँखिया।

सजना-धजना सब छोड़ दिया, विरही डर से इस सावन में।
सखि धीरज भी अब डोल गया, नयना बरसे इस सावन में।।

पल एक नहीं मन हर्षित हो, वह तेज नहीं अब आनन में।
रहना अपना लगता अब तो, निज आलय हो बस कानन में।
उपलब्ध नहीं सुख जीवन में, फिर हर्ष भला किसका मन में।
बिन साजन व्यर्थ लगे सजना, हिय कहता त्याग करूँ छन में।

यह जीवन त्याग बनी शव मैं, निकसी घर से इस सावन में।
सखि धीरज भी अब डोल गया, नयना बरसे इस सावन में।।

पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 1131 Views
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