Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 3 min read

**दुख भरे दिन** — कहानी

****दुख भरे दिन***
अरे बहू रुकमणी,हम बर्बाद हो गए,मेरा बेटा मेरा बेटा____ श्या__म ! हाथ में एक पत्र थामे जगन ने जब रोते हुए स्वर में बहू को आवाज लगाई तो,काम में लगी रुकमणी हक्की बक्की रह गई।
गांव की बहूएं कहा अपने ससुर से बोलती है, सो रुकमणी घूंघट की ओट में मुंह छुपाएं सुनती रही।
अरे मेरे बेटे यह क्या किया तूने,क्यों हमें छोड़कर चला गया।
बार बार ऐसे ही रुदन भरे स्वर में जब जगन आंखो में आसूं भर कर कहे जा रहा था, तो रुकमणी के पास ही बैठे बड़े बेटे
सनी ने पूछ लिया __ क्या हुआ दादा जी,यह कैसा कागज है और मेरे पापा का नाम लेकर आप बार बार यह क्यों कह रहे हो __ बेटा तूने यह अच्छा नहीं किया।
दादा कागज दिखाते हुए कहने लगे _ बेटे इस कागज में तेरे पिता ने लिखा है कि जब तक यह पत्र तुम्हे मिलेगा मै दुनिया छोड़ चुका होऊंगा।
जैसे ही यह शब्द रुकमणी के कानों में पड़े मुंह से चीत्कार निकल गई,सुध बुध खो कर दहाड़े मार कर रोने लगी।
बेटे सनी की आंखे भी भर आईं, दस बारह वर्ष का सनी रोते रोते बोल पड़ा नहीं दादा जी नहीं ऐसा नहीं हो सकता यह झूठा पत्र है मेरे पापा ऐसा नहीं कर सकते।
जगन ने सनी को अपने गले से लगाया और बोले बेटा मैं क्या करूं इसमें जो लिखा है वही तो कह रहा हूं।
उधर मां का रो रो कर बुरा हाल था। जैसे तैसे सनी ने ही हिम्मत बड़ाई और मां को अपने पास बिठाकर कहा मत रो मत रो यह सब झूठी बात है मेरे पापा निश्चित आएंगे यह किसी के द्वारा भेजा गया गलत संदेश है।
धीरे-धीरे वक्त बीतता रहा अपने पति की याद में छोटे-छोटे बच्चों के साथ में रुकमणी जैसे तैसे अपने दिन भी काटती रही। उससे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरे पति ऐसा कर सकते हैं मन में एक भरोसा जगा कर अपने बच्चों को पालती रही।
एक तरफ गरीबी की मार दूसरी तरफ पति के बारे में ऐसी सूचना।रुकमणी बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों को संभालते हुए जीवन जी ही रही थी, कि एक ओर संकट आन पड़ा। उसका छोटा बेटा लच्छू सामान्य सी बीमारी में चल बसा। परिवार की गरीबी ,बेसहारा रुकमणी ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अपने बेटे के लिए अंतिम क्रिया का भी सही सही इंतजाम न कर सकी।
सनी ही गांव से इधर उधर से जो भी खाने पीने को मिलता उसी से घर गुजर चलता था। दादा दादी चाचा चाची सभी ने भी रुकमणी से न जाने क्यों रिश्ता तोड़ लिया था। बड़ी मुश्किलों से जीवन का गुजर बसर हो रहा था।
इसे ईश्वर का चमत्कार करें या रुक्मणी का भाग्य !
एक दिन सुबह सुबह जब सनी गांव में इधर उधर गया था और मां घर पर ही कुछ कार्यों में व्यस्त थी कि अचानक रुक्मणी का सुहाग श्याम उसके सामने खड़ा था।
रुकमणी को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था वह दौड़ करके अपने पति श्याम से लिपट गई।
स्वामी ,मेरे स्वामी कहां चले गए थे । क्यों इतना कष्ट दिया?
क्यों ऐसी खबर क्यों भेजी।
नहीं-नहीं रुकमणी – मैंने कोई पत्र नहीं भेजा लगता है इसमें अपनों की ही चाल है। अब तक सनी भी घर आ चुका था ।
जैसे ही देखा पापा मां से बाते कर रहे है,दौड़कर वह भी अपने पापा से लिपट लिपट कर रोने लगा।
दादा दादी चाचा चाची को खबर लगी कि_ श्याम आ गया है तो वह उससे मिले भी नहीं उपर से घर छोड़कर कहीं चले गए।
श्याम को बहुत क्रोध आया ।
परंतु रुक्मणी ने समझाते हुए कहा _यह मेरे नसीब के कष्ट थे ।आप किसी को दोष मत लगाइए।
श्याम कहने लगा – तुम्हारी बात मानता हूं ,चलो तैयार हो जाओ सभी। हमें अब यहां नहीं रहना और ऐसा कहके श्याम अपने परिवार को लेकर घर से निकल आया। जन्मभूमि छोड़कर उसने अपना नया ही कर्म क्षेत्र बनाया ।आज श्याम का पूरा परिवार सुख से जीवन बिता रहा है। जीवन में आए हुए उस मोड़ को भूल कर के प्रगति उन्नति के साथ सुखमय जीवन बीता रहा है ।

**कहानी कुछ कुछ आप बीती है**
राजेश व्यास अनुनय

3 Likes · 5 Comments · 320 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
KRISHANPRIYA
KRISHANPRIYA
Gunjan Sharma
मेरे पास खिलौने के लिए पैसा नहीं है मैं वक्त देता हूं अपने ब
मेरे पास खिलौने के लिए पैसा नहीं है मैं वक्त देता हूं अपने ब
Ranjeet kumar patre
श्रेष्ठता
श्रेष्ठता
Paras Nath Jha
जीवन उद्देश्य
जीवन उद्देश्य
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
हिसाब
हिसाब
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
भीड़ में खुद को खो नहीं सकते
भीड़ में खुद को खो नहीं सकते
Dr fauzia Naseem shad
मर्दुम-बेज़ारी
मर्दुम-बेज़ारी
Shyam Sundar Subramanian
बाल कविता: जंगल का बाज़ार
बाल कविता: जंगल का बाज़ार
Rajesh Kumar Arjun
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
Lakhan Yadav
घड़ी घड़ी ये घड़ी
घड़ी घड़ी ये घड़ी
Satish Srijan
बाद मुद्दत के हम मिल रहे हैं
बाद मुद्दत के हम मिल रहे हैं
Dr Archana Gupta
हमनवां जब साथ
हमनवां जब साथ
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
दिनांक:- २४/५/२०२३
दिनांक:- २४/५/२०२३
संजीव शुक्ल 'सचिन'
घिरी घटा घन साँवरी, हुई दिवस में रैन।
घिरी घटा घन साँवरी, हुई दिवस में रैन।
डॉ.सीमा अग्रवाल
जब कोई न था तेरा तो बहुत अज़ीज़ थे हम तुझे....
जब कोई न था तेरा तो बहुत अज़ीज़ थे हम तुझे....
पूर्वार्थ
सन्यासी
सन्यासी
Neeraj Agarwal
त्वमेव जयते
त्वमेव जयते
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मुझे याद आता है मेरा गांव
मुझे याद आता है मेरा गांव
Adarsh Awasthi
.........,
.........,
शेखर सिंह
तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।
तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।
Phool gufran
2678.*पूर्णिका*
2678.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नारी तेरा रूप निराला
नारी तेरा रूप निराला
Anil chobisa
शिव तेरा नाम
शिव तेरा नाम
Swami Ganganiya
माटी में है मां की ममता
माटी में है मां की ममता
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मानते हो क्यों बुरा तुम , लिखे इस नाम को
मानते हो क्यों बुरा तुम , लिखे इस नाम को
gurudeenverma198
बात सीधी थी
बात सीधी थी
Dheerja Sharma
इक शाम दे दो. . . .
इक शाम दे दो. . . .
sushil sarna
फ़र्क़ नहीं है मूर्ख हो,
फ़र्क़ नहीं है मूर्ख हो,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
डाल-डाल तुम हो कर आओ
डाल-डाल तुम हो कर आओ
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
"विकृति"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...