दुःख हो धनी या सुख धनी |
दुःख हो धनी या सुख धनी |
चलती रहती, कवि लेखनी ||
प्रीत ओ सत्य, हो परम गुण ।
यह परम बात बस, सीखनी ।।
जो ना है, क्यों कर देखनी l
आँख देखें, वही देखनी ll
जलाए, कुढाये, चिढाये l
बाते न रखनी, है फेकनी ll
प्यास न, सत्य वीर बनाये l
प्यास मनसा, कभी न धरनी ll
अरविन्द व्यास “प्यास”