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26 Oct 2019 · 1 min read

“दीप की अभिलाषा”

चाह नहीं, ऊँचे भवनों पर सज जाऊँ,
ड्योढ़ी पर जल,या,अमीर की इतराऊँ।
कर शोभित या,अट्टहास करते महलों को,
दम्भ, द्वेष को, महिमामंडित कर जाऊँ।।

चाह नहीं, मैं झुन्ड मात्र बनके रहकर,
कर आमोद-प्रमोद, सदा को बुझ जाऊँ।
‘जीवन हुआ निरर्थक’, पश्चातापोँ मेँ, या,
बुझने से पहले ही, जल-जल मर जाऊँ।।

मन की है यह चाह, किसी कुटिया में जाऊँ,
मिटे रात्रि-मालिन्य, सवेरा कर जाऊँ।
निर्जन पथ पर दिखे, अँधेरा घना कहीं,
जलकर सारी रात, तिमिर मैँ हर जाऊँ।।

ईश द्वार दिख जाए कहीं, भूले भटके,
हृद-इच्छा है मेरी, वहीँ पर रह जाऊँ।
प्रेम-आस्था के सँगम की, राह दिखा,
जलकर भी, जीवन कृतार्थ मैं कर जाऊँ।।

दिखे कहीं अज्ञान, तोड़कर सब बाधाएँ,
पहुंचूं मैं उस द्वार, ज्ञान-दीपक कहलाऊँ।
जहाँ कहीं नैराश्य, दृष्टिगत हो जाए,
बनकर “आशा”-दीप, वहीं रच-बस जाऊँ..!

रचयिता-
Dr.Asha Kumar Rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

Language: Hindi
14 Likes · 11 Comments · 1214 Views
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