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12 Aug 2018 · 8 min read

दीदी नींद नहीं आ रही…..

दीदी ! नींद नहीं आ रही ……
माँ की ममता का कोई मोल नहीं है । ममता अप्रतिम , अविस्मरणीय एवं मातृ ऋण है । ईश्वर ने मातृ शक्ति को भरपूर ममता दी है , जिससे कि, वह अपनी संतान का पालन –पोषण कर सके , व शिशु को अपने स्निग्ध कोमल अंचल मे छुपा सके । प्यार से लोरी सुना कर शिशु को सुरक्षा का अहसास करा सके, व प्यार से थपकी देकर सुला सके ।
नीरू एक सुंदर, सुशील , संस्कारी लड़की थी उसने परास्नातक डिग्री प्राप्त की थी , व अपने विषय में पूर्ण रुपेण पारंगत थी । उसकी नियुक्ति हमारे ग्राम में सहायक अध्यापिका के पद पर हुई । नीरू मिलनसार लड़की थी, व मृदु स्वभाव की थी । जल्दी ही वह अपने विध्यालय मे कड़ी मेहनत व मृदु व्यवहार के कारण लोक प्रिय हो गयी । छात्र व छात्राएं उसे बहुत चाहने लगे । घर –घर उसके व्यवहार व विद्वता की चर्चा होने लगी थी ।
नीरू, अभी मात्र 25 वर्ष की थी । उसके माता –पिता निर्धन थे व पेन्शन से मुश्किल से उनका गुजारा चलता था , अत :नीरू बेटी ही उनके जीवन यापन का सहारा थी । नीरू बेटी के अतिरिक्त उसकी दो सगी बहनें नीना व रीना भी थी , जिनका विवाह हो चुका था । वे अपने घरों मे खुश थी , किन्तु माता –पिता की देखभाल करना उनके लिए कठिन कार्य था । उन दोनों के भी दो –दो बच्चे थे ।
अपने माता –पिता के संरक्षण के अतिरिक्त, नीरू को अपने भविष्य की भी चिंता थी । माता –पिता को नीरू के लिए विवाह योग्य लड़के की तलाश थी , किन्तु कहीं बात बन नहीं रही थी ।
नीरू के पड़ोस के विध्यालय मे अनुभव नाम का एक सहायक अध्यापक था , दोनों साथ साथ बस पकड़ते थे । अनुभव नीरू को पसंद करता था, और मन ही मन नीरू भी उसे चाहने लगी थी । नीरू, जब बस में अनुभव को देखती तो उसकी आँखों मे चमक आ जाती थी । एक अनजान सहारे का अहसास उसे होता जो उसे सुकून पहुंचाता था । अनुभव भी जब नीरू को आस पास पाता, उसका हृदय प्रफुल्लित हो उठता था ।
दोनों को, इस तरह सफर करते दो बरस बीत गए , परस्पर एक दूसरे की अनुपस्थिति उनको उदास व बैचेन करती थी ।
एक दिन दोनों बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे थे , रिम झिम फुहार पड़ रही थी । सावन का महीना था। नीरू छाते की ओट लेकर तिरछी निगाहों से कभी- कभार अनुभव पर नजर डालती , और फिर सामान्य होने का प्रयास करती थी । अनुभव भी मन ही मन परेशान व बैचेन था , उसके मन की बात मन ही मन मे दब कर उफान मारती थी । आखिर उससे रहा ना गया । और वो नीरू के करीब खड़ा हो गया , बस स्टॉप पर एक्का –दुक्का ही यात्री बस की प्रतीक्षा मे खड़े थे ।
अनुभव ने, नीरू के पास खड़े होकर उसका औपचारिक रूप से उसका हाल –चाल पूछा । नीरू ने भी स्वाभाविक रूप से उनका उत्तर दिया । धीरे –धीरे, नीरू व अनुभव करीब आते गए । नीरू ने भी अनुभव के विचार जानने की कोशिश की व अपने माता पिता के बारे में विस्तार से बताया अनुभव के परिवार के सम्बंध में जानकारी प्राप्त की । नीरू के अनुसार , अनुभव एक सुशील, संस्कारी व सच्चा , ईमानदार इंसान था , जो परिवार की ज़िम्मेदारी निष्पक्ष रूप से निभाने को तैयार था । अनुभव के माता पिता सामान्य परिवार के थे । उनकी भी देखभाल अनुभव ही करता था ।
धीरे धीरे विचारों का संगम , प्रेम के बीज़ प्रस्फुटित कर गया । दोनों ना केवल दूरभाष पर बल्कि प्रत्यक्ष रूप मे भी एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे । एक दिन बस स्टॉप पर अनुभव ने नीरू से अपने दिल की बात प्रकट की ,
डरते –डरते, हृदय मे घबराहट लिए उसने कहा , –नीरू, हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते है । हमारे परिवार को हमारी आवश्यकता है , हम एक दूसरे को प्यार करने लगे हैं । नीरू तुम्हें देख कर मन आनंदित होता है , क्या तुम मुझसे विवाह करोगी ।
नीरू ने अचानक आए, इस प्रस्ताव पर पहले हिचकिचाहट व्यक्त की, किन्तु, धीरे- धीरे उसने स्वीकार कर लिया कि वह भी, अनुभव से प्यार करने लगी है, व अनुभव, उसके लिए उचित जीवन साथी साबित होगा, उसने अनुभव से हामी भर दी ।
अनुभव संस्कारी लड़का था । उसने अपने माता- पिता से , अपने विवाह और नीरू के सम्बंध मे विस्तार से चर्चा की । अनुभव के माता -पिता उदार हृदय, व बच्चे की चाहत मे अपनी चाहत रखते थे । उन्हे, अपने लाढले पर पूरा भरोसा था ।
उन्होने नीरू के माता- पिता से नीरू का हाथ मांग लिया ।
जब, हल्की ठंडक दस्तक देती है , सूरज गुलाबी होकर चारों तरफ नरम धूप व फूलों की खुशबू बिखेरता है , जब गरम कपड़े पहने युवा , रंग- बिरंगे, परिधानों मे राहों पर आवागमन करते हैं, तो ये अद्भुत दृश्य होता है । एसी ही, रात्रि के अंतिम प्रहार मे , वर्ष के अंतिम माह में , दोनों युवा, विवाह- बंधनो मे बंध गए । जब , सूरज की किरने प्रथम गवाही देने, गवाक्ष से कमरों मे प्रवेश करती हैं, व दिवस के आगमन का संकेत करती हैं , दो नव युवा एक दूसरे से, सात जन्मों की कसमें खाते हुए हमेशा के लिए एक -दूजे के हो जाते हैं ।
दोनों का दाम्पत्य जीवन प्रारम्भ हो चुका था। उनके कंधों पर सास –ससुर की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी थी , जिसे उन्होने बखूबी निभाया , दोनों जीवन रूपी नैया मझधार मे खेने लगे ।
एक दिन नीरू, अनमनस्क भाव से बैठी थी । अनुभव उसकी बैचेनी का कारण समझ नहीं पा रहा था । अनुभव ने प्यार से कहा , —
नीर, कुछ समझ में नहीं आवत तुम काहे ऐसन बैठी हो , मन ही मन मे कछु परेशान लगती हो।
नीरू ने कहा –अनु, हम एक दुविधा में हैन , काहे की हमरे कक्षा की एक लइकी एक मुस्लिम लरिका के संघे फरार हो गइल बा , ई लईकन सब , काह समझ के एतना बाड़ा कदम उठाइन हैं ।
अनुभव –कौन लड़की बा जौन स्कूल के पूरब माही गाँव से आवत रही , वही, का नाव रहा ओकर ? –मोनी
हाँ मोनी ?
अनुभव –लईका कौन रहा, जौन हड्डी टोला से आवत रहा ?
नीरू –नुरुल ,
अनुभव –वह लईका एतना बदमाशी किहिश , अगर दुइनों काउनों गलत कदम उठाए लिहे, तो समझो उपद्रव होई जाई ।
एक दिन बाद, पता चलता है, की दोनों नाबालिग अन्य ग्राम में साथ साथ पकड़े गए । गाँव वालों ने, दोनों की धुनाई की फिर दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया । पुलिस ने , दोनों के माता- पिता को चेतावनी देकर, दोनों बच्चो को उनके अभिभावकों के हाथ सौप दिया ।
नीरू के विध्यालय के छात्र होने के कारण नीरू और अनुभव, मोनी के घर मिलने पहुंचे व हालचाल जाना । नीरू ने मोनी को बुला कर उससे घटना के बारे मे पूछा ।उसे समझाते हुए कहा ।
मोनी –का समझ के तू नुरुल के साथे भागले हो , शादी बियाह , पीयार –मनुहार गुड्डा –गुड्डी के खेल नाही ।
मोनी सर झुकाये मौन पूर्ववत खड़ी रही ।
नीरू ने कहना शुरू किया –मोनी जानत हौ की नुरुल विधर्मी परिवार के लईका है, ओकर संग कैसे कर लेला । ओकर रीति –रिवाज , धरम –संस्कार सब उल्टा बा , उ तुमका बुर्का पहिनाइ , पर्दामें रहे के पड़ी , तूहारआपन नाम , धरम बदलवा दीन जाई । मांसाहार उनकर मुख्य भोजन बा । ओकर संग कैसे कर लेला , बात न माने पर मार –पिटाई , गली गलोज सब सहे के पड़ी । मोनिया उन लोगन के कौनौ भरोसा नईखे , जौन आपन बहन –बिटिया के असुरक्षित छोड़ सकेला ,तनी से विवाद में तलाक हो जाला , समझौता करे पे दुसर मर्द के संघे हलाला होला फिर इद्दत होला , फिर तलाक होला उसके बाद निकाह होला । ई सब अत्याचार- अनाचार मुस्लिम बहनों पर रोजाना होला , पर कौनौ खिलाफत मे ना खड़ा हो सकेला । बेटी , आपन बजूद बचाय के चला , कुसंगत से बचा ।
मोनिया , पढ़ –लिख कर आपन पाँव पर खडा हो । तब जौन निर्णय लीन जाई , ठीक होई ।
मोनी, इस कदम से पूरे खान –दान की नाक कटजाला , कम से कम बनाय ना सका , तो बिगाड़ा तो ना ।
मोनी की समझ में आ गया कि उसके द्वारा उठाया गया कदम बिलकुल गलत था , अगर कुछ उंच- नीच हो जाती तो खान –दान की नाक कट जाती , उसने नीरू दीदी से कहा –दीदी हम अब कब्बो कौनौ गलत कदम ना उठाइब । जौन करब माता –पिता जी कि सहमति से करब ।
नीरू ने राहत की सांस ली , व मोनी को समझा –बुझा कर उसे पुन :विध्यालय आने के लिए तैयार किया ।
अब नीरू और अनुभव अपने दिन खुशी- खुशी गुजारने लगे । दोनों को विवाह किए हुए दो वर्ष बीत चुके थे । अब नीरू ने अपने परिवार के बारे में सोचना प्रारम्भ कर दिया था । दोनों की सहमति से एक बच्चे पर बात बनी , और दोनों ने खुशी -खुशी स्वीकार कर लिया ।
नीरू अब गर्भवती हो गयी थी । अनुभव उसकी देखभाल में कोई कसर ना छोडता था । सुबह फलों का रस, पौष्टिक भोजन , आराम , औषधियों सब का ख्याल समय से रखता था । महिला चिकित्सक से परामर्श , टीका करण सब कराया , धीरे – धीरे वह दिन भी आया जब नीरू को प्रसव पीड़ा शुरू हुई , अनुभव ने तुरंत नीरू को, चिकित्सालय मे भर्ती कराया । उसने नीरू की दो बहनों को बुलावा भेजा । वे दोनों समय रहते नए मेहमान की अगवानी हेतु पहुँच गईं ।
रात्रि के प्रथम प्रहर में नीरू ने सुंदर स्वस्थ्य शिशु को जन्म दिया , अनुभव की खुशी का ठिकाना ना रहा । अनुभव को प्रथम बार पिता की भूमिका का अहसास हो रहा था । नीरू भी बहुत खुश थी , सारा परिवार नन्हें –नए मेहमान के आगमन पर खुशियाँ मना रहा था । अनुभव ने सबका मुंह मीठा कराया ।
दो दिन बाद नीरू की बड़ी दीदी ने नीरू का ख्याल करके नवजात शिशु को अपने पास सुला लिया , जिससे नीरू आसानी से सो सके , किन्तु माँ की ममता इतनी निष्ठुर कहाँ होती है कि क्षण भर अपने लाल का वियोग सह सके , उसने दीदी से कहा –दीदी , नींद नहीं आ रही ।
दीदी ने पुचकारते हुए कहा , जाओ, सो जाओ आराम से, बच्चा आराम से सो रहा है ।
नीरू ने फिर थोड़ी देर बाद कहा , दीदी, नींद नहीं आ रही ।
आखिर कार शिशु को नीरू के पार्श्व मे सुलाना पड़ा तब नीरू चैन से सो सकी ।
आखिर बच्चे के रुदन , मुस्कान व नेत्र खोलकर देखने में उसके साथ माँ का साया हमेशा साथ रहता है , उंगली पकड़ कर चलने से लेकर अपने पैरों पर खड़े होने तक माँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हर कदम पर साथ होती है ।
आजकल लव जेहाद जैसे शब्द कानों में जहर घोलते हैं व पत्र –पत्रिका की शीर्ष पंक्ति बन जाते हैं , किन्तु इस घटना के पीछे का सच ये है कि इन हिन्दू लड़कियों का मानसिक ,व धार्मिक शोषण होता है । मुस्लिम लड़कों के खूबसूरत चेहरे, दिखावटी हाव –भाव ना केवल आकर्षित करते हैं बल्कि गुमराह भी करते हैं और निकाह की आड़ में धर्म परिवर्तन भी कराते हैं ।
02- 08- 2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,
सीतापुर

Language: Hindi
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