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24 Oct 2017 · 1 min read

दीदार -ऐ-यार (ग़ज़ल)

खबर सुनी जब से उनके आने की हमने ,
खोल दिए दिल के दरवाज़े सभी हमने ,

सब गुनाहों को साफ़ कर अपने आंसुओं से,
कालीन बिछा दिए अपने आँचल के हमने .

झाड़कर गर्द फानूस-ऐ-इल्म की रोशन किया,
चिरागों से मन के अंधेरों को मिटाया हमने.

कुछ प्याले भरे आंसुओं से ,और कुछ आहों से ,
अपने दर्दों गम का दस्ताखन बिछाया हमने,

मुहोबत के धागे मैं पिरोकर हसरतों के फूल ,
बड़ी शिद्दत से उनके लिए हार बनाया हमने,

अपनी जिंदगी की नाव को उनके हवाले करने को ,
अपना माझी जो उन्हें बनाया था हमने .

मगर हाय ! तकदीर को मंज़ूर नहीं था यह दीदार ,
अपनी बेकरार रूह को बस किसी तरह समझाया हमने.

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