दीखता नही क्या… ?
चुप रहो,
जाल बिछाया है,
दाना डाला है
शिकार दाना चुगने आने वाला है
शिकार आज फिर से फंसने वाला है ,
दीखता नही तुम्हें क्या… ?
आज फिर शिकार होने वाला है
जो सुबह बताने बाला था
जो बांग देके जगाने वाला था
वो खुद ही आज सोने वाला है
आज शिकार का आनंद आने वाला है
दीखता नही क्या… ?
आज मन मलंग होने वाला है
क्या फर्क पड़ जायेगा जो मुर्गा न रहा दरीचे में
शिकार के आदि हैं हम
कबूतर के लिए जाल डाला जायेगा
हर हाल में शिकार किया जायेगा
अपने बच्चे तक को न बक्सा जायेगा
चुप रहो, दीखता नही तुम्हें क्या… ?
आज फिर शिकार होने वाला है…
…सिद्धार्थ