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4 Dec 2020 · 1 min read

दिल गुनहगार था

दिल गुनहगार था ऑंखों ने सजा पाई
मैं लैट आई थी ऑंखें जाने कैसे भूल आई

तमाम रात उसी की याद में सिसकती रही ऑंखें
मैं हाॅंथ उठा के आंसू भी न पोंछ पाई

दिल के धौंकनी में सुलगता रहा इक नाम रात दिन
मैं चाह कर भी उस नाम का पीछा करना न छोड़ पाई

~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
1 Like · 422 Views
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