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5 Feb 2017 · 1 min read

दिल कहे, ‘आना-जाना’ चाहिए, रोज़ रोज़, ‘नया बहाना’ चाहिए।

#सफ़रनामा

दिल कहे, ‘आना-जाना’ चाहिए,
रोज़ रोज़, ‘नया बहाना’ चाहिए।

दीदार को, उस रेशमी मुखड़े का
अचूक, ‘नज़र-ऐ-निशाना’ चाहिए।

एक से बचे दूजे गस खाके गिरें,
नज़र भी हमें ‘क़ातिलाना’ चाहिए।

असर ज़माने का मेरी मोहब्बत पे
ईश्क़-ऐ-अदब ‘वहशीयाना’ चाहिए।

दिल कहे, ‘आना-जाना’ चाहिए,
रोज़ रोज़, ‘नया बहाना’ चाहिए।

Basant_Malekar

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