–दिल्लगी कहूँ या मोहब्बत–
——————–नज़्म—————–
आपकी नज़रें मिली प्यार की तरह।
ज़ोश में भर गए हम तो ज्वार की तरह।।
दस्तक हमने दी जब आपको नज़र की।
आप सिमट गए फिर सनम सार की तरह।।
क़रीब से दिले-हसरत कहते हम मगर।
फेर ली तूने नज़र संसार की तरह।।
समझ पाए ना हम ख़्याले-दिल आपका।
रह गए बेजान-सी दीवार की तरह।।
दिलो-दिमाग़ में छवि बसी है गुलाब-सी।
उतर गए दिल में यार बहार की तरह।।
हम चाहें थे हर राज छिपे दुनिया से।
पर छपी सब बातें समाचार की तरह।।
चाँद कैसे छिपा ले चाँदनी को दोस्त!
बजे है सच्चाई तो गिटार की तरह।।
नादानी मत करना यार भूल से भी।
दिखती है ये सदा इश्तिहार की तरह।।
आँखों की चमक सब बयां करे है यार।
उभरे ये जवानी के निखार की तरह।।
इसे दिल्लगी कहूँ या मोहब्बत सनम।
दिल दे दिया प्रीतम एक हार की तरह।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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