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5 Oct 2017 · 1 min read

दिन लड़कपन के न आते है

तरही गज़ल
2122 2122 2122 212

सुन खुदाया इल्तिज़ा को क्या पता कुछ भी नहीं l
ज़िंदगी मेरी परेशाँ आसरा कुछ भी नहीं ll

दिन लड़कपन के न आते है कभी फ़िर लौट कर l
है कहाँ गुलजार जीवन अब मज़ा कुछ भी नहीं ll

आसमाँ सारा जहाँ उन्मुक्त मैं किस पाश में l
देखता सब कुछ हूँ लेकिन सूझता कुछ भी नहीं ll

हुस्न भी बिकने लगा है और यौवन जिस्म भी l
ये जहाँ में अब तो शरमों हया कुछ भी नहीं ll

तुम न जाना छोड़कर हम जी न पायेंगे कभी l
रब कि बरकत हो पिया तेरे सिवा कुछ भी नहीं ll

नज़र छुप -छुप के मिलाती हो मुझे भी है पता l
मैं यकीं कैसे करू मुझसे वफ़ा कुछ भी नहीं ll

इन गरीबों का कभी छीना न कर तू रोटियां l
दिल गरीबों का दुखाने से बुरा कुछ भी नहीं ll

✍ दुष्यंत कुमार पटेल

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