दिखते हैं खामोश मगर हम अंदर अंदर बिखरे हैं
दिखते हैं खामोश मगर हम अंदर अंदर बिखरे हैं
इस दिल में तो जगह जगह केवल डर ही डर बिखरे हैं
आंखों में देखिये हमारे कितने सागर बिखरे हैं
यादों के सीपों से जबसे मोती छिटकर बिखरे हैं
साथ समय के चलते चलते चाहें दूर निकल आये
मगर निगाहों में तो वही पुराने मंज़र बिखरे हैं
युवा आज के त्याग प्रेम की परिभाषा ही भूल गये
तभी अना के कारण देखो कितनों के घर बिखरे हैं
बूढ़ा शजर अकेला तूफानों में नहीं सँभल पाया
टूट गयीं शाखाएं ,पत्ते भी इधर उधर बिखरे हैं
फूल मिले गर राहों में तो तुम ये भूल नहीं जाना
इन राहों पर जगह जगह ही कंकड़ पत्थर बिखरे हैं
छीन रहा है वक़्त ‘अर्चना’ अपनों को धीरे धीरे
ऊपर से चट्टान मगर हम भीतर भीतर बिखरे हैं
डॉ अर्चना गुप्ता