दायरा
सोच का दायरा
जितना होगा
उतना ही चिंतन
मस्तिष्क में
जगह बनाएगा
सीमित क्षेत्र में
असीमित चिंतन
भीड़ भरे बाज़ारों
के कोलाहल के
सिवाय कुछ
नहीं दर्शायेगा
जहाँ निष्कर्ष के
लिए तथ्य हीन
आवाजों के
अलावा
शून्य ही
होता है
ऐंसे में उच्चता
की अपेक्षा करना
बेमानी है
यही ओछेपन की
निशानी है