Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Sep 2017 · 5 min read

दादा जी का अविस्मरणीय ऋण

दादा जी का अविस्मरणीय ऋण

बहुत समय पहले की बात हैं। वर्षा ऋतु का मौसम था। देापहर का वक्ता था मेरा ग्राम चारों तरफ पानी से घिरा हुआ था। चारों तरफ सैलाब उमड़ा हुआ था। गंगा नदी के उफान को देखकर दिल बैठ जाता था। गंगा नदी में नाव सवारों को देखकर कलेला मुख को आने लगता था। इन्ही मे से एक नाव में सवार होकर मैं और मेरा एक साथी अपने गंाव हालचाल लेने शहर से घर पहुॅचना चाीह रही थी। ग्रामीण बेबस लाचार बेघरवार होकर ऊॅची जगहों पर रहने के लिये मजबूर थे। चना चबेना सत्तु ही इनका भोजन था। नौका में सवार होकर हम मजधार का सीना चीरते हुये आगे बढ़े, तभी रहरहकर कच्चे मकानांे का धराशायी होने का भयकर शब्द सुनायी पड़ता था। किसी तरह हम पलवइया ग्राम के किनारे पहुॅचें। यह बिहार के हाजीपुर जनपद में पड़ता था एवं बाढ़ की बिभीषिसिका से ग्रस्त था। पलवइया ग्राम हमारा पैतृक निवास था। जो गंगा मइया के आगोश में समा चुका था। नदी किनारे खड़े वृक्ष तिनके की तरह गंगा में समा गये थें। मुझे याद हैं इसी में मेरे मित्र प्रेम बाबू एवं उनकी पत्नी बच्ची की यादें बसती थी। प्रेम बाबू बाल्यकाल में गंगा को पारकर पाटलीपुत्र पहुॅचते थें। उनके एक हाथ में पुस्तकेें व एक हाथ में सूखे कपड़े होते थे। प्रेम बाबू बहुत मेधावी छात्र थे। उनके शब्दों में कहूॅ तो भूगाल इतिहास एवं समाजशास्त्र में सौ प्रतिशत लाते थे। यदि एक प्रतिशत भी कम हुआ, तो गुरूजी की मार खानी पड़ती थी। अतः दण्ड के भय से सभी छात्र जी तोड़ मेहनत करते थे। प्रेमबाबू ने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। कहते है प्रेम के पास परीक्षा का शुल्क भरने के पैसे नही थे। उनके पिताजी एवं माता जी का स्वर्गवास हो चुका था। प्रेमबाबू बड़े भाई के पास रहा करते थे। उनके चाचा जी को जब यह ज्ञात हुआ कि प्रेम के पास परीक्षा शुल्क भरने के पैसे नही हैं, तो उन्होने शुल्क का धन मनीआर्डर से भेजा, परन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, उक्त मनीआर्डर उनके बड़े भाई के हाथ लग गया। भाई के बांछे खिल गयी। उन्होने अपने छोटे भाई प्रेम की परवाह न करके खूब गुलछर्रे उड़ाये। जब प्रेम को ज्ञात हुआ तो उन्होने ताऊ से पूछां। ताऊ ने साफ इन्कार की मुद्रा नकार दिया मुझे कोई पैसे नही मिले हैं। विवश होकर प्रेमबाबू ने मैट्रिक खयाल दिल से निकाल दिया। हताश मायूश होकर यह किस्सा अपने गुरूजी को सुनाया। उन्होने प्रेेम को धैर्य रखते हुये चाचा जी को पुनः खत लिखने को कहा। हारकर प्रेम जी ने पुनः पत्र द्वारा चाचा जी को सूूचित किया शुल्क किसी कारण वश जमा नही किया जा सका हैं, तबतक चाचा जी सारा माजरा समझ चुके थे। उन्होने सन्देश वाहक के माध्यम से धन भेजा एवं विद्यालय में शुल्क जमा करवाया। आज भी प्रेमबाबू चाचा जी का यह एहसान कभी नही भुला पाये हैं। मेरिट में प्रथम स्थान पाकर प्रेमबाबू ने परीक्षा पास की। एवं शहर में रहकर ही ट्यूशन द्वारा आजीविका को सहारा दिया।
यह एक अजब इत्तेफाक था, कि प्रेमबाबू अपनी पत्नी जो उस वक्त आठवें क्लास में पढ़ रही थी को ट्यूशन पढ़ा रहे थे। उनकी पत्नी बच्ची अपने माॅ बाप की लड़ौती सन्तान थी ।खूब लाड़ प्यार से वे बच्ची का पालन पोषण करते थे। अचानक जब बच्ची के रिश्ते की बात शुरू हुयी जब बच्ची के पिता की नजर प्रेम बाबू पर टिक गयी। प्रेम जी न केवल मेधावी बल्कि धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके चैड़े माथे पर गजब की चमक थी। जो उनके व्यक्तितव को असाधरण बनाती थी। बच्ची के पिता ने प्रेम के चाचा जी से चर्चा चलायी । व अपनी बेटी का हाथ प्रेम जी को सौपने का निर्णय लिया। खूब धूम-धम से विवाह सम्पन्न हुआ। कहते हैं, बच्ची के पिता देव जी ने एक सप्ताह तक बारात को बिदा ही नही किया । अखिर वर पक्ष के निवेदन पर उन्होने बारात बिदा की। वो फूटफूट कर रोये थे। ऐसा पिता पुत्री का स्नेह दुर्लभ ही देखने को मिलता हैं। बच्ची बिदा होकर पाटलीपुत्र से पलवइया ग्राम हाजीपुर जनपद नौका पर सवार होकर रवाना हुयी। पाटलीपुत्र के अपने आलीशान मकान से होकर एश्वर्य आराम एवं स्नेह का बन्धन तोड़कर बच्ची प्रेम जी के मिट्टी के घर में दिया एवं लालटेन के रौशनी में जीवन व्यतीत करने के लिये तैयार हो गयी। परन्तु चाचा जी ने प्रेम जी को रेलवे में नौकरी का अमूल्य अवसर प्रदान कर माॅ गंगा की गोद से हमेशा-हमेशा के लिये दूर कर दिया। वक्त के साथ वो गांव वो घर वो गंगा का तट समस्त गंगा की गोद में समा गये। शष्ेा केवल स्मृतियां रह गयी । जो आज भी रहरहकर जेहन में उभर आती हैं। आज भी अपना बचनप जावनी और प्रोढ़ावस्था गुजर जाने के बाद प्रेम बाबू उहसास करते है। ये जीवन और ये खुशियां चाचा जी के उपकार स्वरूप् हैं। जो आज भी स्मृति में संचित हैं। चिरस्मरणीय है। प्रेमबाबू पचहत्तर साल के हो गये है। उनके बच्चे बड़े होकर सरकारी नौकरी में प्रतिशिष्ठि पद पर तैनात हैं। परन्तु वो आज भी अपने को अकेला पाते हैं। भगवत भजन और राम नाम के अतिरिक्त उनकी कोई विशेष दिनचर्या नही हैं। अचनाक एक दिन प्रेमबाबू को दिल को दौरा पड़ा । घर में पढ़ी लिखी बहू पोते अपने अपने स्वार्थ में मस्त उनके लड़के भी थे। किसी ने अवकाश न प्राप्त होने का बहाना बनाया तो किसी ने व्यवसाय मे व्यस्त होने का बहाना बताया । तो बड़े लड़के की बहू ने लड़के की आज्ञा से उन्हे कह भी भर्ती कराने से मना कर दिया । हाय री किस्मत मेहनत से पाई-पाई जोड़कर जिन लड़को को पैरों पर खड़ा होने सिखाया। ज्ञान और विज्ञान का का मेल सिखाया । वे ही आज बेगाने हो गये। आखिर तीन दिन बाद उन्हे एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, तबतक जीवन की हर आशा समाप्त हो चुकी थी। प्रेमबाबू ने मृत्यु शैया पर पड़े-पड़े ही भगवत दर्शन कर लिये थे। एवं उनके जीने की अभिलाषा समाप्त हो चुकी थी। अब तो कुछ भी हो उन्हे कोई फर्क नही पड़ता था। अखिर उक दिन जेठ की दोपहरी में अपने शुभचिन्तक कहलाने वाले लड़को के सामने निर्वाण प्राप्त किया। प्रेमबाबू के जाने के बाद बुजुर्गाे की लिस्ट में केवल चाचा जी ही बचे थें। उन्हे मुधमेह की बीमारी थी। उनके पैर में बना नासूर जानलेवा साबित हुआ एवं जन्माष्टमी की रात जब भगवान श्रीकृष्ण जन्म ले रह थे, उन्हे ऐसी नींद आयी कि वो दोबारा उठ नही सके । चाचा जी कोमा में चले गये थे। अन्त में कोमा में ही उनका स्वर्गवास हो गया था।
आज प्रेमबाबू एवं चाच जी दोनो दुनिया मे नही है, परन्तु उनका ज्ञान एवं कर्तव्यनिष्ठा परिवार की देखरेख का जज्बा आज भी उनके लाड़लों के संस्कारों में जीवित हैं एवं वे अपने उत्तरदयितवों का निर्वाह अपने माॅ को सुखी व सम्पन्न बनाकर बखूबी निभा रहे हैं। मानो अपने किये का प्रायश्चित कर रहे हैं।

लेखकः-डा0 प्रवीन कुमार श्रीवास्तव

Language: Hindi
321 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
विराम चिह्न
विराम चिह्न
Neelam Sharma
बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
Sanjay ' शून्य'
मां भारती से कल्याण
मां भारती से कल्याण
Sandeep Pande
ओझल तारे हो रहे, अभी हो रही भोर।
ओझल तारे हो रहे, अभी हो रही भोर।
surenderpal vaidya
हिडनवर्ग प्रपंच
हिडनवर्ग प्रपंच
मनोज कर्ण
*🌹जिसने दी है जिंदगी उसका*
*🌹जिसने दी है जिंदगी उसका*
Manoj Kushwaha PS
पाप का जब भरता है घड़ा
पाप का जब भरता है घड़ा
Paras Nath Jha
मुझे इश्क से नहीं,झूठ से नफरत है।
मुझे इश्क से नहीं,झूठ से नफरत है।
लक्ष्मी सिंह
भगवान ने कहा-“हम नहीं मनुष्य के कर्म बोलेंगे“
भगवान ने कहा-“हम नहीं मनुष्य के कर्म बोलेंगे“
कवि रमेशराज
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
The_dk_poetry
*** चोर ***
*** चोर ***
Chunnu Lal Gupta
अभिसप्त गधा
अभिसप्त गधा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
-जीना यूं
-जीना यूं
Seema gupta,Alwar
शेर
शेर
Monika Verma
💐प्रेम कौतुक-327💐
💐प्रेम कौतुक-327💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*आर्य समाज और थियोसॉफिकल सोसायटी की सहयात्रा*
*आर्य समाज और थियोसॉफिकल सोसायटी की सहयात्रा*
Ravi Prakash
"खामोशी की गहराईयों में"
Pushpraj Anant
पके फलों के रूपों को देखें
पके फलों के रूपों को देखें
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
एकाकी
एकाकी
Dr.Pratibha Prakash
वर्णमाला हिंदी grammer by abhijeet kumar मंडल(saifganj539 (
वर्णमाला हिंदी grammer by abhijeet kumar मंडल(saifganj539 (
Abhijeet kumar mandal (saifganj)
■ मुक्तक-
■ मुक्तक-
*Author प्रणय प्रभात*
"अहसासों का समीकरण"
Dr. Kishan tandon kranti
दोहे : प्रभात वंदना हेतु
दोहे : प्रभात वंदना हेतु
आर.एस. 'प्रीतम'
आई होली झूम के
आई होली झूम के
जगदीश लववंशी
होंसला
होंसला
Shutisha Rajput
एक नासूर ये गरीबी है
एक नासूर ये गरीबी है
Dr fauzia Naseem shad
Maybe the reason I'm no longer interested in being in love i
Maybe the reason I'm no longer interested in being in love i
पूर्वार्थ
*वीरस्य भूषणम् *
*वीरस्य भूषणम् *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
2968.*पूर्णिका*
2968.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
गाँव की याद
गाँव की याद
Rajdeep Singh Inda
Loading...