दहेज़ निषेध
दहेज़ लेना देना अच्छा नहीं।
लोभ से बना रिश्ता सच्चा नहीं ।।
पूछते क्यों लोग ये घर से क्या लाई।
क्यों न पूछते वो छोड़के क्या आई।
रिश्ते छोड़ना यूँ वशका नहीं।
दहेज़ बने दानव नोचता रुहों को।
कभी काटे पटरी सौंपता कुओं को।
कि ये जीवन इतना सस्ता नहीं।
जीवन की पूँजी सौंपते हैं माँ-बाप।
बन जाता दहेज़ है फिर भी अभिशाप।
धन साधन है कोई रब्बा नहीं।
दहेज़ लेना देना अच्छा नहीं।
लोभ से बना रिश्ता सच्चा नही।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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दहेज़ एक बुराई है जड़ से मिटानी होगी।
लेंगे न देंगे क़सम ये सबको उठानी होगी।
शादी दिलों का बंधन है कोई व्यवसाय नहीं,
यह बात खुद को समझनी और समझानी होगी।
मात्राएँ…27–27-27-27
गीत….19-22