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10 May 2020 · 1 min read

दस्तयारी

हर ओर समंदर फैला है , दूर तलक बस पानी है ।
इकलौती कश्ती छोटी सी , रात बड़ी तूफानी है ।

दस्तयारी मिलेगी कैसे , और दस्तयार बनेगा कौन ।
यकीन मानिए ऐसे में , उम्मीद ही हर बेमानी है ।

साथ नहीं था पहले कोई , अब भी सब एकाकी है ।
चाहत की तो चाह ही झूठी ,यह बिल्कुल नादानी है ।

आलम ऐसा हुआ कि , अपना क़ायल कहीं नहीं ।
न हुजूम दोस्तों का कोई , न चेहरा ही नूरानी है ।

अशोक सोनी ।

4 Likes · 6 Comments · 174 Views
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