दर्द समझ में आया
छत में खिलखिलाती गुलाब की
कलियों ने एक सवाल किया
जब मुझे तुमने तोडा था
मेरे दर्द का कभी ख्याल किया
मैं भी उनसे सहम कर बोला
दर्द को तुम्हारे मैंने कभी नही था तोला
अब अलग होने का दर्द समझ में आया
बिखर गया मैं भी जब वो मुझसे अलग होने को आया
ख़ुद के तारों को गर्दिश में पाया
दिल था बेचारा समझ ना पाया
टूट कर फ़िर जुड़ ना पाया
खिलखिलाती कलियों से गुलाब
के अलग होने का दर्द समझ में आया
खुद को जब मैंने दर्द में पाया
बहता हुआ दरिया रुक ना पाया
दिल को सबने ख़ूब समझाया
नदान दिल के कहाँ समझ में आया
दिल लगा कर बहुत पछताया
हँसता चेहरा भी मुरझाया
लबों ने उसका नाम दोहराया
अक्स मुझ पर उसका नज़र है आया
मुझको उसने बहुत छालाया
रातों को रोज़ जगाया
ख़्वाबों का भण्डार लगाया
हक़ीकत से मुझको भटकाया
ख़्वाबों में जीना सीखाया
नींदों में मुझको तड़पाया
रूह को मेरी अपना बताया
उनका खेल समझ ना पाया
दर्द मुझे समझ में आया
कलियों ने भी खूब सताया
टूटे दिल का मजाक बनाया
ख़्वाब टूटने का मंजर समझ में आया
भूपेंद्र रावत
19।08।2017