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28 Nov 2016 · 1 min read

दर्द के भँवर से

दर्द के भँवर से खुदको गुज़रते नहीं देख़ा
क्या समझे वो दर्द कभी पलते नहीं देखा

चोट खाई इश्क़ में जो बन गया नासूर
इस दर्द को सीने से निकलते नहीं देख़ा

हर ताल पर थिरकती थी जो बेसबब यार
कुम्हला गई है वो कली थिरकते नहीं देखा

देखो कैसा हुआ असर है नोटबंदी का
हमने नेताओं को ऐसे बिफरते नहीं देखा

रोटी कपड़ा और मकान भरे पड़े अनाज
लगी जो तलब दौलत की मिटते नहीं देखा

भाग रहे हो क्यों ऐसे दिखावे में यारों
जिस दौर में कँवल ने घर बसते नहीं देखा

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