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11 Aug 2016 · 2 min read

दर्द किसान का (हरियाणवी)

कोय ना समझदा दुःख एक किसान का।
होरया स जोखम उसनै आपणी जान का।।

जेठ साढ़ के घाम म्ह जलै वो ठरै पौ के जाड्डे म्ह।
कोय बी ना काम आवै उसकै भई बखत आड्डे म्ह।
किसान की गरीबी प हांसै भई लोग ब्योंत ठाड्डे म्ह।
मन नै समझावै वो के फैदा औरां का खोट काड्डे म्ह।
कर्म कर राखै माड़े दोष के उस भगवान का।।
सोलै दिन आये प मुँह बंद होज्या जहान का।।

कर्जा ठा ठा फसल बोये जा करकै नै कुछ आस।
कदे सुखा पड़ज्या कदे बाढ़ आज्या होज्या नाश।
कर्मा का इतना स हिणा फसल बी ना होती खास।
दुःख विपदा म्ह गात सुखज्या बनज्या जिंदा लाश।
मन म्ह न्यू सोचे जा जीना के हो स कर्जवान का।।
बेरा ना कद सी पहिया घुमैगा बखत बलवान का।।

बालकां का कान्ही देख देख खून सारा जल ज्या स।
भूखे तिसाये रहवैं आधी हाणा न्यू काया गल ज्या स।
गरीबी के कारण देखदे माणसा का रुख बदल ज्या स।
कदे दो पिस्से ना माँग ले सोच के मानस टल ज्या स।
रोज करना पड़ै स सब्र पी कै जहर अपमान का।।
माथे की लिखी के आगे के जोर चालै इंसान का।।

गुरु रणबीर सिंह नै बहोत समझाया पढ़ लिख ले।
हो ज्यावैगा कामयाब बेटा ढ़ाई अखर तू सीख ले।
याद कर उन बाताँ नै जी करै ठाडू ठाडू चीख ले।
इसे जमींदारे तै आछा कितै जा कै मांग भीख ले।
सुलक्षणा नै ठाया बीड़ा साच स्याहमी ल्यान का।।
बालकपन तै स खटका उसकै कलम चलान का।।

©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

Language: Hindi
Tag: गीत
650 Views
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