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2 Jan 2020 · 1 min read

दर्द का यहशास

( कविता )

बिन जख्मों के तोड़ गया कोई
आँसू दिलो में छोड़ गया कोई

हम रोते नहीं थे तलबारों के जख्मों से
ऐसा खज्ज़र मारा हमारें दिल पर

आँसू नहीं आते थे हमारी आँखो में
आज समुन्दर छोड़ गया वो ही

जीतना मुक्कदर था हमारा
उसका रूक मोड़ गया कोई

कुछ बूँदें होती हैं जिंदगी में शहद की
उनकों तो चक रहै थे स्वाद से
उनकों बिखैर गया कोई
उनसे हैं खुशिया हमारी फिर क्यों

हमारा रूख मोड़ गा कोई
आँसू ओं के हमारी पहचान हैं उनकों
फिर क्यों उनकी जिंदगी का रूख मोड़
गया कोई

याद आती हैं आज भी हमें उनकी
जिनसें थी हमारी खुशिया
उनकों रोते छोड़ गया कोई

लेखक
Jayvind singh

Language: Hindi
1 Like · 466 Views
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