दरस की आस ( विरह )
———— #दरस_की_आस ————
विकल मन है तड़पता अब, दरस की आस है हमदम।
व्यथित उर वेदना जागी, मिलन की प्यास है हमदम।।
बरसती है बदरिया जब, नयन से नीर है झरता।
तुम्हारी याद का हर क्षण, मिलन की आस है भरता।।
लुभे सौतन सहेली पर, यही संत्रास है हमदम।
विकल मन है तड़पता अब, दरस की आस है हमदम।।
न सोती हूँ, न जगती हूँ, सदा बस राह तकती हूँ ।
सजन घर आज आयेंगे, सदा पदचाप लखती हूं ।।
तुम्हारे बिन अधूरा हर , मधुर मधुमास है हमदम।
विकल मन है तड़पता अब, दरस की आस है हमदम।।
तुम्ही बस मीत हो मेरे, अधर पर गीत है तुम से।
व्यथा इतनी रही दिलवर, पराजय जीत है तुम से।।
सजन बिन श्वांस है खाली , प्रिया बस लाश है हमदम।
विकल मन है तड़पता अब, दरस की आस है हमदम।।
चले आओ चले आओ, बलम आओ न तड़पाओ।
सदा नवनीत बन साजन , मिलन की ज्वाल भड़काओ।
नहीं तुम त्याग पाओगे, मुझे विश्वास है हमदम।
विकल मन है तड़पता अब, दरश की आस है हमदम।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,?९५६०३३५९५३