थका हारा हुआ
मैं वो लोहा बना
जो तप ना सका आग में
हथौड़ों की मार सह ना सका
पिघल कर मिल गया खाक मैं ..
हर वार युद्ध की
दुदुबियां बजती रही
फौलाद मैं हो ना सका
लड़ता रहा चाकू-छुरी लिए हाथ में..
जन्म को धिक्कारती
मिट्टी मेरी लजा रही
जननी मेरी लजा रही
किस लाल को मैंने रखा कोख में..
है मौन मेरा ज़िस्म
है शांत मेरी आत्मा
मन बार बार कचौटता
कर्म क्यों ना लिखा मेरे भाग्य में…