#कूचे में महबूब (उल्लाला छंद)
उल्लाला छंद की परिभाषा और कविता-
उल्लाला छंद-
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यह एक सममात्रिक छंद है।इसमें चार चरण होते हैं।इसके दो भेद या प्रकार होते हैं।पहले प्रकार में प्रत्येक चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं और प्रत्येक चरण की ग्यारहवीं मात्रा लघु होती है।दूसरे प्रकार में पहले और तीसरे चरण में पन्द्रह-पन्द्रह मात्राएँ एवं दूसरे और चौथे चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं इसमें प्रत्येक चरण की तेरहवीं मात्रा लघु होती है।उल्लाला छंद का मुख्य रूप से पहला प्रकार ही प्रचलन में ज़्यादा है।
उल्लाला छंद को चन्द्रमणि संज्ञा से भी पुकारा जाता है।
उदाहरण स्वरूप कविता
#कूचे में महबूब है
मीठा मीठा बोलिए , संग सभी के डोलिए।
चार दिनों की ज़िंदगी , मौज़ वफ़ा सब कीजिए।।
हर मौसम रंगीन है , जीवन तो नमकीन है।
वैर नहीं तू प्यार कर, और दुवाएँ लीजिए।।
देख तुझे सब हँस पड़े , ऐसा कोई काम कर।
साथ चलेंगी नेकियाँ , परछाई सी मानिए।।
नोंच रहा है आज तू, कल पछताएगा यहाँ।
प्यारे लुटने के लिए , जी भरके तू लूटिए।।
शूल चुभे गर पाँव में , हँसके यार निकालिए।
शर्त रखेंगे दूसरे , बात सही यह जानिए।।
आज दवाएँ भेंट कर , देर ज़रा सी शोक है।
मरने को है शत्रु अब , क्षमा कर भी दीजिए।।
‘प्रीतम’ खिड़की खोल तू , आज हवाएँ बोलती।
कूचे में महबूब है , उठके प्यारे देखिए।।
–आर . एस . प्रीतम