त्योहार ऐसे हो गए
पहले तो हम भी सही थे इसबार ऐसे हो गए।
हाल किसी का कौन जानता है व्यवहार ऐसे हो गए।
रंग बेरंग पड़ चुका है खाली खाली पिचकारियां है,
किससे मिल लें सोचना है त्योहार ऐसे हो गए।
– सिद्धार्थ पांडेय
पहले तो हम भी सही थे इसबार ऐसे हो गए।
हाल किसी का कौन जानता है व्यवहार ऐसे हो गए।
रंग बेरंग पड़ चुका है खाली खाली पिचकारियां है,
किससे मिल लें सोचना है त्योहार ऐसे हो गए।
– सिद्धार्थ पांडेय