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23 Dec 2018 · 3 min read

त्योहारों के सही मायने

लेख – त्योहारों के सही मायने

भारतीय सभ्यता अपने आप में एक अनूठी सभ्‍यता रही है, यहाँ के त्योहारो , रीति रिवाजो में अलग ही छवि देखने को मिलती है, त्योहार से हमे बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है भारतीय सभ्यता में त्योहार प्रेम ओर सद्भावना के प्रतीक माने जाते हैं l प्रत्येक त्योहार अपनी एक कहानी या तथ्य से जुड़ा हुआ है चाहे होली हो, दीवाली हो, ईद हो, गुड फ्राइडे हो, दशहरा हो या फिर नवरात्रि… सबकी अपनी अपनी विशेषता है अपनी अपनी पहचान है l सभी त्योहार अपने अपने पौराणिक महत्व भी समेटे हुए हैं l
इस वर्ष, 10 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहा है l पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है नवरात्रि, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, असम, पश्चिम बंगाल में गुजरात आदि में बडी धूम धाम से मनाया जाता है, पश्चिम बंगाल में होने वाली दुर्गा पूजा तो विश्व विख्यात है, पूरी दुनिया से आने वाले श्रद्धालु भगवती भवानी के इस पावन पर्व का हिस्सा बनकर माँ दुर्गा भवानी का आशीर्वाद लेते हैं l नवरात्रि त्योहार दशहरा तक चलता रहता है l प्रत्येक हिंदू इस पर्व को भक्ति भाव से मनाता है, हर घर में कन्या पूजन किया जाता है, कन्याओं को देवी माँ का स्वरूप माना जाता है उनके चरणों को पखार कर चरणामृत लिया जाता है सुंदर आसनो पर विराजित कर शोडश उपचार से पूजन कर स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है, उसके बाद वस्त्र दक्षिणा दे कर विदा किया जाता है l
क्या? यह सही मायने में कन्या पूजन हुआ, मुझे सोचने को मजबूर कर दिया। क्या? सिर्फ नवरात्रि में कन्या पूजन कर अपने दायित्वों से इतिश्री कर लेनी चाहिए l क्या भारतीय सभ्यता सिर्फ त्योहारों ओर रीति रिवाजों तक ही सीमित है, उसके बाद फिर से वही भ्रूण हत्या, बलात्कार, दहेज.,कन्याओं का उत्पीड़न, स्त्रियों से अभद्रता ओर न जाने क्या क्या…टेलीविजन पर दिखती तस्वीरें, अखबारों में छपी तस्वीरें क्या कन्या पूजन की तस्वीरों से मेल खाती हुई नजर आती है, नहीं बिलकुल नहीं lआखिर क्या हो गया है हमारी मानसिकता को, क्यो स्त्री को उपभोग की वस्तु समझने लगे हैं, क्या यह पश्चिमीकरण का आवरण तो नहीं.. भारतीय सभ्‍यता तो इस तथ्य का समर्थन नहीं करती कि स्त्री उपभोग की वस्तु है I हमारा समाज इतना कैसे गिर सकता है जहां स्त्री को सक्ति का स्वरूप माना जाता है, उस सक्ति के साथ ऎसे कुकृत्य, सच में घिन आती है एसी घटनाओं को देखकरl
आखिरकार कन्या पूजन का उद्देश्य पूरा कब होगा, स्त्री सक्ति स्वरूपा है, इस तथ्य को सही मायने में कब अधिकारिक स्वरूप मिलेगा, कन्या पूजन सच में सार्थक तभी होगा जब हम सही मायने में स्त्री के मान सम्मान, सुरक्षा के प्रति हम अग्रसर होंगे, यदि हम ऎसा नहीं कर सकते हैं तो यह त्योहारों का ढकोसला बंद होना चाहिए l
नवरात्रि के बाद दशहरा का पावन पर्व आता है बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है यह, हर वर्ष रावण का पुतला दहन किया जाता है, क्या सिर्फ पुतला दहन करने से रावण रूपी बुराई का अंत किया जा सकता है क्या अपने अंदर के रावण को मारने का दायित्व हमारा नहीं हैl वर्षो पहले सिर्फ एक रावण, सभ्य समाज के आतंक बना हुआ था, आज तो स्थिति कुछ ओर ही बनी हुई है, घर घर में रावण पैदा हो गए इनका अंत आखिर कब तक.l निर्लजता की सारी हदें पार हो रही है बेटियाँ अपने बाप, भाइयो के सुरक्षित नहीं.. बेटियाँ अपने घरों में सुरक्षित नहीं है तो बाहर की बात ही क्या l
अगर हम सच में रावण का दहन करना चाहते हैं तो अपने अंदर के रावण का अंत तो करना ही होगा l एक अकेली स्त्री हमारे लिए मौके का चौका नहीं हो सकती बल्कि वह तो हमारी जिम्मेदारी होती है कि वह सकुशल अपने गंतव्य तक पहुंच सके, अगर प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को भलीभांति समझ सके तो प्रत्येक स्त्री अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुच सकती है, प्रत्येक बेटी अपनी माँ की कोख से जन्म ले सकती है, एक गरीव की बेटी भी अपनी ससुराल में सकुशल रह सकती है फिर देखिए समाज की तस्वीर कैसी होती है… आपके द्वारा किया गया कन्या पूजन भी सार्थक होगा ओर दशहरा पर किया गया रावण का दहन भी l

Language: Hindi
Tag: लेख
222 Views
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