तो बात और थी
दर्द के आलम में तुम आते बात और थी
मैं फिसलता तुम हाथ बढ़ाते तो बात और थी
तुमने हमेशा तन्हाई में ही पुकारा मुझको
कभी महफ़िल में बुलाते तो बात और थी
हमें मौत का नही तेरे फ़रेब का ग़म था
ख़ंजर सीने पर चलाते तो बात और थी
तुम वो बादल हो जो सिर्फ़ गरजते ही रहे ‘अर्श’
कभी दो बूँद बरस जाते तो बात और थी